अगर उसकी ह्त्या कर दी गयी तो फिर हम क्यों ज़िन्दा हैं और कितना ज़िन्दा हैं...?आदमी बनने की जिम्मेवारियाँ और विकास के चक्करघिन्नी में धूमते हुये कोल्हु के बैल की तरह हमें जीने की आदत पड़ गयी है और हमारे उस बेलौसपन को इतना तोड़ दिया है कि अब वह समय की मुर्दागाड़ी में सजकर जीवनेतिहास की वस्तु मात्र बनकर रह गयी है।
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कवयित्री के अनुसार, ' उतना भी बच नहीं रह गया ' वह ` / संथाल परगना में / जितने / की उनकी / संस्कृति के किस्से ‘ और फिर, ' कायापलट हो रही है इसकी / तीर-धनुष-मांदल-नगाड़ा-बांसुरी / सब बटोर लिये जा रहे हैं लोक संग्रहालय / समय की मुर्दागाड़ी में लादकर ‘ निर्मला जी को अब कौन समझाए कि समय ' मुर्दागाड़ी ` नहीं होता।
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कवयित्री के अनुसार, ' उतना भी बच नहीं रह गया ' वह ` / संथाल परगना में / जितने / की उनकी / संस्कृति के किस्से ‘ और फिर, ' कायापलट हो रही है इसकी / तीर-धनुष-मांदल-नगाड़ा-बांसुरी / सब बटोर लिये जा रहे हैं लोक संग्रहालय / समय की मुर्दागाड़ी में लादकर ‘ निर्मला जी को अब कौन समझाए कि समय ' मुर्दागाड़ी ` नहीं होता।