फिर वहीं दृश्य, वहीं डर! वहीं जिज्ञासा और वहीं भावनाए!! उस गुफा से बाहर निकलते-निकलते पूरे सोलह मिनट लगे!!! मैंने अपनी आदत के मुताबिक इस यात्रा के स्मारक के तौर पर दो सुन्दर मुलायम पत्थर ले लिये।
12.
मेहरबानी करके नन्हे पत्थर फेंको सीपियों के जीवाश्म फेंको कंकड़ फेंको मिगदाल त्सादेक की खदानों से न्याय और अन्याय को फेंको मुलायम पत्थर फेंको मीठे ढेले फेंको चूने के पत्थर फेंको मिट्टी फेंको समुद्रतट की रेत फेंको लोहे की जंग फेंको मिट्टी फेंको हवा फेंको कुछ मत फेंको जब तक कि तुम्हारे हाथ थक न जाएं और युद्ध भी थक जाए और यह भी हो कि शान्ति थक जाए और बनी रहे.