यह नाम पैंटोमिमस नामक एकल नकाबपोश कलाकार से लिया गया था, हालांकि यह जरूरी नहीं था कि प्रदर्शन हमेशा मूक ही हुआ करते थे मध्यकालीन यूरोप में, माइम का प्रारंभिक रूप जैसा कि ममर निभाते थे और बाद में यह मूक प्रदर्शन के रूप में विकसित हुआ.
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साल 1913 महीना अप्रैल और स्थान मुम्बई का ओलंपिया थियेटर 100 वर्ष पहले दादा साहब फाल्के ने जब अपनी फिल्म ' राजा हरिश्चंद्र ' का प्रदर्शन किया तब शायद ही किसी को यकीन हो रहा था कि ब्लैक एंड व्हाइट पर्दे पर अभिव्यक्ति के इस मूक प्रदर्शन के साथ भारत में स्वदेशी चलचित्र निर्माण की शुरुआत हो चुकी है।
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नदीगार संगम के नाम से चर्चित एसआईएफएए की अगुवाई में आयोजित मूक प्रदर्शन के दौरान दक्षिण के बड़े कलाकार विक्रम, शरत कुमार, प्रकाश राज भाग्यराज, राधा रवि, सत्यराज, शिवकुमार, सूर्या, कार्ती, भारत, उदयनिधि स्टालिन, धंशिका, मोनिका, विशाल कृष्णा और चंद्रशेखर टी. नगर स्थित अनशन स्थल पहुंचे.