| 11. | त्यौं मन मूढ बिषय-गुंजा गहि, चिंतामनि बिसरै॥
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| 12. | पंडित भव खंडित करै, मूढ बढावै सृष्टी ॥३७॥
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| 13. | भोग में, सो मूढ हो सुख
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| 14. | मुझ मूढ को तो कुछ पल्ले ही नही पड़ा।
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| 15. | “ कवि: तुलसीदास ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ सुन मन मूढ सिखावन मेरो।
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| 16. | तस्मादेतन्न ते मूढ ब्रह्मास्त्र प्रतिभास्यति॥ 30 ॥
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| 17. | त्यौं मन मूढ बिषय-गुंजा गहि, चिंतामनि बिसरै॥
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| 18. | उर्जस्वित कामना अनल से उसका मूढ न किया ज्वलित
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| 19. | मूढ जनता भी समझ रही है साफ साफ ।
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| 20. | इसलिए हे मूढ मानव! तू संतों का संग कर।
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