एक पत्रकार के लिए जिन अपेक्षाओं को मूर्तरूप देना आवश्यक होता है, प्रेमचंद वैसे ही पत्रकार थे, उनकी हंसवाणियों में आह्वान, आलोचना, सुझाव, विरोध, समर्थन आदि का समावेश परिवेश और परिस्थिति की आवश्यकतानुसार होता था।
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न्याय की इस विशद परिकल्पना को मूर्तरूप देना शासन का कर्तव्य है और शासन को अपने आधारभूत कर्र्तव्य का स्मरण दिलाते रहना, बल्कि उसे अपने कर्तव्य पालन के लिए विवश करते रहने का दायित्व भारतीय संविधान ने न्यायपालिका को सौंपा है।
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आपके ब्लाग पर काफ़ी देर के बाद आया हूं किंतु वही सुंदर शब्दों को तराश कर उन्हें मूर्तरूप देना, उनकी जड़ता में अर्थपूर्ण प्राणों का संचार करके पंक्तियों में अपने भावों, उद्गारों और अनुभूतियों की सुंदर अभिव्यक्ति की कला आपकी इस रचना में भी स्पष्ट लक्षित है।