उस कलादृष्टि में भारतीय मूर्तिशास्त्र को सामने रख कर एक नई आकृतिमूलकता को आहूत किया जा रहा था, जिसमें देवाकृति का आदर्शीकरण था।
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उस कलादृष्टि में भारतीय मूर्तिशास्त्र को सामने रख कर एक नई आकृतिमूलकता को आहूत किया जा रहा था, जिसमें देवाकृति का आदर्शीकरण था।
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उस काल तक पहुँचते-पहुँचते बौद्ध, जैन और ब्राह्मण धर्म के मूर्तिशास्त्र बहुत अधिक विकसित हो चुके थे और विभिन्न देवी देवताओं के अनेक ध्यान लोकप्रिय हो रहे थे।
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विष्णुधर्मोत्तर पुराण के चित्रसूत्र, मूर्तिशास्त्र तथा संस्कृत नाटकों के गहन अध्ययन ने उनमें मिथकीय इमेजरी की विराट और विशिष्ट समझ, संवेदना और सौंदर्य-दृष्टि के विकास में एक ठोस आधारभूमि का काम किया।
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विष्णुधर्मोत्तर पुराण के चित्रसूत्र, मूर्तिशास्त्र तथा संस्कृत नाटकों के गहन अध्ययन ने उनमें मिथकीय इमेजरी की विराट और विशिष्ट समझ, संवेदना और सौंदर्य-दृष्टि के विकास में एक ठोस आधारभूमि का काम किया।
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उन्होंने चीनी इतिहासकारों झुआंग जैंग तथा यो जिंग का हवाला देते हुए बताया कि नालंदा में धर्म-दर्शन के अतिरिक्त जन स्वास्थ्य, मेडिसिन, आर्किटेक्चर, स्कल्पचर (वास्तु शास्त्र एवं मूर्तिशास्त्र), व्याकरण, ज्योतिष, न्याय (तर्क शास्त्र) आदि की शिक्षा दी जाती है।