मूर्ति भंजक (मूर्ति का तोड़ने वाला व मूर्तिपूजा विरोधी) होने के कारण तथा सोने-चाँदी को लूटने के लिए उसने मन्दिर में तोड़-फोड़ की थी।
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काल एवंं मुस्लिम मूर्ति भंजक शासकों के प्रहार से इन में से अधिकतर मूर्तियां खंडित हैं किन्तु उनका शिल्प और शिल्पगत सौन्दर्य किसी भांति भी कम नहीं हुआ है।
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आप का धन्यवाद @...विकासोन्मुख मानव के लिए निरा मूर्ति पूजक ही हो... @...विकासोन्मुख मानव के लिए निरा मूर्ति पूजक ही होना प्रयाप्त नहीं है, उसे मूर्ति भंजक भी होना चाहिए....
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सबसे बड़े अपराधी डॉ. राममनोहर लोहिया थे जिन्होंने तानाशाह अंग्रेजी हुकूमत में लगी सैंकड़ो प्रतिमाओं को तोड़कर साम्राज्यवाद के खिलाफ समाजवाद का नारा दिया और मूर्ति भंजक कहलाये!
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अब आज जब कोई राष्ट्रीय सर्वमान्य प्रतीक व्यक्तित्व हमारे पास शेष ही नहीं बचा तो अब राष्ट्रीय मूर्ति भंजक अभियान की निगाहें राष्ट्रीय प्रतीकों जैसे अशोक की लाट और भारत माता जैसी काल्पनिक किन्तु राष्ट्रवादी अवधारणाओं को विकृत / विद्रूप करने लगीं.
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इस प्रचलित स्थापना के विपरीत यह उपन्यास समूचे संदर्भों के साथ मूर्ति भंजक के रूप में उत्तराखंड के जनजीवन की करुण गाथा को न सिर्फ प्रस्तुत करता है बल्कि तथ्यात्मक रूप से चिपको आन्दोलन के साठ-पैंसठ साल के इतिहास का कलात्मक दस्तावेजीकरण भी करता है।
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इसमें दक्षिण पंथीयों ने भी पराक्रम दिखाया इस्लामिक मूर्ति भंजक संस्कार जब साहित्य में आये तो सलमान रश्दी और तस्लिमा नसरीन ने मुसलमान विरोधी विचारधारा का बाज़ार तलाश लिया तो उधर अरुंधती ने वामपंथी चेतना के बहाने अमेरिका पर निशाना साधा और अपना बाज़ार पा ही गयी...
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कबीर के समकालीन समाज में मूर्ति पूजक हिन्दुओं और मूर्ति भंजक मुस्लिमों के बीच परस्पर वैमनस्यता की ऊँची दीवारें खड़ी थीं और यही वह उचित समय था जब निर्गुणोपासना के द्वारा कबीर अवतारवादी, धारणाओं, मूर्ति पूजा, आस्थाओं, बहुदेववादी दृष्टियों पर भी व्यंग्य कर सकते थे।
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सारे जहां से अच्छा लिखने वाले इक़बाल ने एक बार ऐसा घटित होने पर ही ' शिकवा ' और ' जबाबे शिकवा ' लिखा और फिर पाकिस्तान बनाने का ब्ल्यू प्रिंट ही लिख दिया. और हिन्दू तो जानता ही था कि................. मोहम्मद गज़नवी मूर्ति भंजक था.
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इन सब का जबाब आपके दूसरे लेख में साफ़ तौर पर दिखाई दे रहा है ' २०१० मूर्ति भंजक...'. अब बहस के सहारे सारे संकट समाप्त नहीं हो रहे हैं तो उन पर चर्चा करना या लिखना बंद कर दिया जाए क्योंकि इससे देश की छवि ख़राब होती है या ख़राब होने का खतरा बढ़ जाता है.