द्वितीयक द्वितीयक मूल तंत्र-यह प्राथमिक मूल तंत्र के ऊपर के बिन्दु पर अवषोशण के मुख्य अंग के रूप में उत्पन्न होता है जैसे ही तरूण गेहूँ की पौध परिपक्वता की ओर आगे बढ़ती है।
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द्वितीयक द्वितीयक मूल तंत्र-यह प्राथमिक मूल तंत्र के ऊपर के बिन्दु पर अवषोशण के मुख्य अंग के रूप में उत्पन्न होता है जैसे ही तरूण गेहूँ की पौध परिपक्वता की ओर आगे बढ़ती है।
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ये ऐसी गलत धरना समाज में फैली की जो ढोंगी थे, जो पाखंडी थे, उन्होंने इस श्लोक को महत्वपूर्ण मान लिया और शराब पीने लगे, धनोपार्जन करने लगे, और मूल तंत्र से अलग हट गए, धूर्तता और छल मात्र रह गया! और समाज ऐसे लोगों से भय खाने लगे! और दूर हटने लगे! लोग सोचने लगे कि ऐसा कैसा तंत्र हैं, इससे समाज का क्या हित हो सकता हैं?