ना मस्जिद मेंना काबे कैलास मेंमैं तो तेरे पास में बन्देमैं तो तेरे पास मेंना मैं जप में, ना मैं तप मेंना मैं बरत उपास में ना मैं किरिया करम में रहतानहिं जोग सन्यास मेंनहिं प्राण में नहीं पिंड मेंना ब्रह्माण्ड आकास मेंना मैं प्रकुति प्रवार गुफा मेंनहिं स्वांसों की स्वांस में खोजी होए तुरत मिल जाऊंइक पल की तलास मेंकहत कबीर सुनो भई साधोमैं तो हूँ विश्वास
12.
ना मस्जिद मेंना काबे कैलास मेंमैं तो तेरे पास में बन्देमैं तो तेरे पास मेंना मैं जप में, ना मैं तप मेंना मैं बरत उपास में ना मैं किरिया करम में रहतानहिं जोग सन्यास मेंनहिं प्राण में नहीं पिंड मेंना ब्रह्माण्ड आकास मेंना मैं प्रकुति प्रवार गुफा मेंनहिं स्वांसों की स्वांस में खोजी होए तुरत मिल जाऊंइक पल की तलास मेंकहत कबीर सुनो भई साधोमैं तो हूँ विश्वास
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“ ना किसी के मन मेंना सोच में ” शायद ललितजी स्वयं दुविधा में हैं! दोस्त बनाने में रूचि है किन्तु किसी की सोच या मन में नहीं रहना चाह्ते! कैसे संभव है? विरोधाभास! आप अपने बारे में सोचने और लिखने के लिये पूर्णरूपेण स्व्तंत्र हैं किन्तु हमारी यही विनती है कि ऎसी निराशाजनक कविताएँ सार्वजनिक ना करें, निराशा का संचार ना करें और सदा खुश रहें ।
मोको कहां ढूंढे रे बन्दे मैं तो तेरे पास मेंना तीरथ मे ना मूरत में ना एकान्त निवास मेंना मंदिर में ना मस्जिद में ना काबे कैलास मेंमैं तो तेरे पास में बन्दे मैं तो तेरे पास मेंना मैं जप में ना मैं तप में ना मैं बरत उपास मेंना मैं किरिया करम में रहता नहिं जोग सन्यास मेंनहि प्राण में नहि पिंड में ना ब्रह्याण्ड आकाश मेंना मैं प्रकुति प्रवार गुफा में नहिं स्वांसों की स्वांस मेंखोजि होए तुरत मिल जाउं इक पल की तालास मेंकहत कबीर सुनो भई साधो मैं तो हूं विश्वास में
16.
मोको कहां ढूंढे रे बन्दे मैं तो तेरे पास मेंना तीरथ मे ना मूरत में ना एकान्त निवास मेंना मंदिर में ना मस्जिद में ना काबे कैलास मेंमैं तो तेरे पास में बन्दे मैं तो तेरे पास मेंना मैं जप में ना मैं तप में ना मैं बरत उपास मेंना मैं किरिया करम में रहता नहिं जोग सन्यास मेंनहि प्राण में नहि पिंड में ना ब्रह्याण्ड आकाश मेंना मैं प्रकुति प्रवार गुफा में नहिं स्वांसों की स्वांस मेंखोजि होए तुरत मिल जाउं इक पल की तालास मेंकहत कबीर सुनो भई साधो मैं तो हूं विश्वास में
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मोको कहां ढूंढे रे बन्दे मैं तो तेरे पास मेंना तीरथ मे ना मूरत में ना एकान्त निवास मेंना मंदिर में ना मस्जिद में ना काबे कैलास मेंमैं तो तेरे पास में बन्दे मैं तो तेरे पास मेंना मैं जप में ना मैं तप में ना मैं बरत उपास मेंना मैं किरिया करम में रहता नहिं जोग सन्यास मेंनहि प्राण में नहि पिंड में ना ब्रह्याण्ड आकाश मेंना मैं प्रकुति प्रवार गुफा में नहिं स्वांसों की स्वांस मेंखोजि होए तुरत मिल जाउं इक पल की तालास मेंकहत कबीर सुनो भई साधो मैं तो हूं विश्वास में
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मोको कहां ढूंढे रे बन्दे मैं तो तेरे पास मेंना तीरथ मे ना मूरत में ना एकान्त निवास मेंना मंदिर में ना मस्जिद में ना काबे कैलास मेंमैं तो तेरे पास में बन्दे मैं तो तेरे पास मेंना मैं जप में ना मैं तप में ना मैं बरत उपास मेंना मैं किरिया करम में रहता नहिं जोग सन्यास मेंनहि प्राण में नहि पिंड में ना ब्रह्याण्ड आकाश मेंना मैं प्रकुति प्रवार गुफा में नहिं स्वांसों की स्वांस मेंखोजि होए तुरत मिल जाउं इक पल की तालास मेंकहत कबीर सुनो भई साधो मैं तो हूं विश्वास में
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मोको कहां ढूंढे रे बन्दे मैं तो तेरे पास मेंना तीरथ मे ना मूरत में ना एकान्त निवास मेंना मंदिर में ना मस्जिद में ना काबे कैलास मेंमैं तो तेरे पास में बन्दे मैं तो तेरे पास मेंना मैं जप में ना मैं तप में ना मैं बरत उपास मेंना मैं किरिया करम में रहता नहिं जोग सन्यास मेंनहि प्राण में नहि पिंड में ना ब्रह्याण्ड आकाश मेंना मैं प्रकुति प्रवार गुफा में नहिं स्वांसों की स्वांस मेंखोजि होए तुरत मिल जाउं इक पल की तालास मेंकहत कबीर सुनो भई साधो मैं तो हूं विश्वास में