बालकों के घातक रोगों में टिटैनस, डिफ्थीरिया, यक्ष्मा, मेनेन्जाइटिस, एन्सेफलाइटिस, न्यूमोनिया, बाल यकृतशोथ आदि हैं।
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इनके पाश्र्व प्रभाव नहीं होते हैं और ये जुकाम, फ्लू, यकृतशोथ और हर्पीज के इलाज के लिए उपयुक्त हैं।
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इस प्रकार का यकृतशोथ (जिगर की सूजन) का रोग हेपेटायटिस ' सी ' नामक विषाणु से फैलता है, जोकि अकेला आर. एन. ए. विषाणु होता है।
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नवजात यकृतशोथ (नेओनटल् हेपटिटिस्) केसमें, पैत्तिक अवरोध विसर्ग काल का धोतक हो सकता है जिससे मल में पित्त और मूत्रमें यूरो-~ बिलिनोजन का पता चलता है, और प्रारंभिक उच्च बिलीरुबिन स्तर घट-बढ़सकता है.
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परिणामस्वरूप यकृतशोथ (Hepetitis) यकृत का बढ़ना (Hepltomegely) आदि विकार उत्पन्न होते हैं, शरीर में Toxicity (विषाक्तता) के बढ़ने से R.B.C. (लाल रूधिर कणिकाएं) का विनाश होने लगता है जिससे splenomegely (प्लीहा वृद्धि) हो जाती है।
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अब देखा जाए तो इस जिगर की सूजन के भी वैसे तो कईं कारण हैं, लेकिन हम इस समय थोड़ा ध्यान देते हैं केवल विषाणुओं (वायरस) से होने वाले यकृतशोथ (लिवर की सूजन) की ओर, जिसे अंगरेज़ी में हिपेटाइटिस कहते हैं।
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परिणामस्वरूप यकृतशोथ (Hepetitis) यकृत का बढ़ना (Hepltomegely) आदि विकार उत्पन्न होते हैं, शरीर में Toxicity (विषाक्तता) के बढ़ने से R.B.C. (लाल रूधिर कणिकाएं) का विनाश होने लगता है जिससे splenomegely (प्लीहा वृद्धि) हो जाती है।