तेज़ चौंधियाती रोशनियों और न्योंसाइनों की संस्कृति रास आ गयी है रिश्तों के जंगल पथरा गए हैं गमलों में मूल्यविहीन पौधों के बीच नागफनी उग आये हैं ऐसे में हताशा ने मुझे भाग्यवादी बना दिया है मेरी पत्नी को बिस्तर से लगा दिया है समय का चक्र चलायमान है शाएद यही विधि का विधान है
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श्रीमान बुद्धिमान जी, ये सम्बोधन इसलिए लिखा है क्योंकि जहांतक मेरी याद दाश्त काम कर रही है आप सूफी होने से पहले वाइजमैन थे खैर सब कुछ परिवर्तनशील है मैं आपके उन लेखों को पढ़ने से वंचित रह गया जिनके कारण आप फिर एक बार चर्चा में हैं पता नहीं कैसे आपके ज्ञान सागर में मैं हर बार गोटा लगाने से रह जाता हूँ शायद यही विधि का विधान है कि मैं आपका विवादित लेख न पढूं इसलिए इस पर चर्चा भी नहीं कर पाउँगा.