यादृच्छिकता अक्सर आँकड़ों में प्रयोग की जाती है| यह अच्छी तरह से परिभाषित सांख्यिकीय गुणों, जैसे पूर्वाग्रह या सहसंबंध की कमी को दर्शाता है| कम्प्यूटेशनल विज्ञान में किसी क्रमरहित या यादृच्छिक संख्या प्राप्त करने के लिए कुछ जाने माने एल्गोरिदम प्रयोग किये जाते हैं|
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इसके अतिरिक्त, डेटा में पैटर्न को इस तरह से मॉडल किया जा सकता है कि वह निष्कर्षों की यादृच्छिकता और अनिश्चितता का कारण बने, और फिर इस प्रक्रिया को उस विधि, या जिस जनसंख्या का अध्ययन किया जा रहा हो, उसके बारे में अनुमान लगाने के लिए किया जाता है।
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इसके अतिरिक्त, डेटा में पैटर्न को इस तरह से मॉडल किया जा सकता है कि वह निष्कर्षों की यादृच्छिकता और अनिश्चितता का कारण बने, और फिर इस प्रक्रिया को उस विधि, या जिस जनसंख्या का अध्ययन किया जा रहा हो, उसके बारे में अनुमान लगाने के लिए किया जाता है।
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इसके अतिरिक्त, डेटा में पैटर्न को इस तरह से मॉडल किया जा सकता है कि वह निष्कर्षों की यादृच्छिकता और अनिश्चितता का कारण बने, और फिर इस प्रक्रिया को उस विधि, या जिस जनसंख्या का अध्ययन किया जा रहा हो, उसके बारे में अनुमान लगाने के लिए किया जाता है।
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अन्यत्र उन्होंने ' वाक् ' और ' अर्थ ' की पारस्परिकता तथा प्रतीक के रूप में शब्द चयन की ' यादृच्छिकता ' की अत्यंत सरल ढंग से व्याख्या करते हुए कहा है कि शब्द ' इस उद्देश्य से बनाए गए हैं कि व्यक्ति की भावना (अर्थ) दूसरे के चित्त में आसानी से उतार दी जा सके।
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पहले दोनों मज़मून जहाँ इस नयी आतंकवादी हिंसा की यादृच्छिकता, इसकी समाज-मनोवैज्ञानिक श्रेणियों और इसके संभावित उपचारों का विश्लेषण करते हैं वहीं सुधीर चंद्र का गाँधी-स्मरण इस पूरे परिदृश्य का न सिर्फ़ एक काउंटर-प्वायंट है, बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप के विशेष संदर्भ में अहिंसात्मक प्रतिरोध के इतिहास को ठीक उस बिंदु पर पढ़ता है जहाँ वह स्वयं अपने प्रणेता के द्वारा प्रश्नांकित है.
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यादृच्छिकता के अनेक अर्थ हैं| सामान्यतया, इसका अर्थ है बेतरतीब होना| किसी घटना के होने अथवा ना होने की यदि कोई दिशा निर्धारित नहीं है तथा वह अनजाने कारणों से किसी नयी स्थिति की ओर बढ़ी चली जा रही है तो ऐसी क्रिया को यादृच्छिक कहते हैं| यह एक गैर-संयोजित तरीके के साथ बढ़ता हुआ क्रियाओं का क्रम है जिसका कोई प्रयोजन नहीं होता|
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भाषाविदों के मतों में-जैसे डॉ. चाटुर्ज्या (1957) इसे प्राकृतिक से वैयाकरणिक की ओर विकसित मानते हैं तो बरो लिंग चयन में यादृच्छिकता और तर्कविहीनता की बात करते हैं और लिंग विधान को भारतीय भाषाओं में दूसरी भाषाओं की अपेक्षा बाद में विकसित हुआ बताते हैं तो एन्टविसल (1945) एटीशन की भूमिका स्त्रीलिंग के रूप परिवर्तन में दिखती है और ज्यूल ब्लाख का मानना है कि आधुनिक भारतीय भाषाओं में संस्कृत के लिंगों का अनुसरण नहीं किया गया है।