इसके अलावा, वॉन टनज़ेलमैन के अनुसार भले ही वे कितना भी 'शाही विफलता को स्वीकार न करते हुए शाही पराक्रम का भ्रम पसंद करते हों' युद्ध कालीन भारी कर्ज़ में डूबा देश, बस उनके तेजी से अस्थिर होते साम्राज्य को बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं था.
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चीन के सम्बन्ध में कोई भी चर्चा और बहस भारत में अभी तक इसलिये अधिक नहीं हुई कि भारत में मीडिया सहित बौद्धिक क्षेत्रों में या तो कम्युनिष्ट या फिर शीत युद्ध कालीन मानसिकता के लोगों का प्रभुत्व है जो अपने अपने कारणों से अमेरिका को ही केन्द्र में रखकर चिंतन करते हैं।
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मैं चाहता हूं कि मेरे पाठक विशेषकर युवा पीढ़ी विजेन्द्र गुप्ता द्वारा भेजे गए इस दिलचस्प लेख को मेरे साथ शेयर करें, ' जब इंग्लैंड के प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने 1947 में इंडियन इंडिपेन्डेंस बिल पेश किया और ब्रिटिश पार्लियामेंट में इस पर बहस हो रही थी तो इंग्लैंड के युद्ध कालीन प्रधानमंत्री सर विंस्टन चर्चिल ने गुस्से से टिप्पणी की ' लुच्चे, बदमाशों और मुफ्तखोरों के हाथ में सत्ता चली जाएगी।