किसी सभा समुदाय या समाज मे उठने बैठने तथा रहने योग्य मनुष्य को सभ्य कहा जाता है उसी के भाव को सभ्यता कहते है।
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लोगों ने हातिमताई (उदारता में अरब का हरि श् च न्द्र) से पूछा, क्या तुमने संसार में कोई अपने से अधिक योग्य मनुष्य देखा या सुना है?
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कर्ण के द्रोणाचार्य के पास जाकर विद्याथी के रूप में लेने के अनुरोध से ही यह सिद्ध होता हैं कि उस काल में कोई भी योग्य मनुष्य किसी भी गुरु से शिक्षा ले सकता था-सभी को ऐसे सामान अवसर प्राप्त थे और जाति व्यवस्था शिक्षा के क्षेत्र में मान्यता नहीं रखती रही होगी ।
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कर्ण के द्रोणाचार्य के पास जाकर विद्याथी के रूप में लेने के अनुरोध से ही यह सिद्ध होता हैं कि उस काल में कोई भी योग्य मनुष्य किसी भी गुरु से शिक्षा ले सकता था-सभी को ऐसे सामान अवसर प्राप्त थे और जाति व्यवस्था शिक्षा के क्षेत्र में मान्यता नहीं रखती रही होगी ।
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श्रेष्ठता, योग्यता और सनकी होने का रिश्ता योग्य व श्रेष्ठ व्यक्ति अक्सर सनकी और उन्मादी होते हैं, कोई ऐब होना भी उनमें स्वाभाविक है, फिर भी वे लोगों के हृदय में विशिष्ट स्थान रखते हैं, किन्तु वे सनक, उन्माद तथा ऐब से दूर रहें तो वे ईश्वर तुल्य तो हो सकते हैं पर श्रेष्ठ और योग्य मनुष्य नहीं रहेगें-संकलित
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इस तरह अब यह बात तो अच्छी तरह से समझ में आ गयी है कि अनुशासन ही हमारे अंदर की महानता व श्रेष्ठता को जागृत करता है और हमें एक श्रेष्ठ व योग्य मनुष्य बनाता है, और यह तो स्वाभाविक ही है कि श्रेष्ठ व योग्य मनुष्यों के पौरुष व योगदान से ही एक महान राष्ट् का निर्माण होता है ।