-शिरोवेदनाः खेखसे की जड़ को कालीमिर्च, रक्तचंदन एवं नारियल के साथ पीसकर ललाट पर उसका लेप करने से पित्त के कारण उत्पन्न शिरोवेदना में लाभ होता है।
12.
ताँबे के लोटे में रक्तचंदन कुमकुम, लाल रंग के फूल तथा जल डालकर पूर्वाभिमुख होकर सूर्य-गायत्री मंत्र सके तीन बार सूर्य भगवान को जल दें और सात बार अपने ही स्थान पर परिक्रमा करें।
13.
(3) “बीरावधूत” जिसके सिर के बाल दीर्घ तथा बिखरे हों, गले में हाड़ या रुद्राक्ष की माला पड़ी हो, कटि में कौपीन हो, शरीर पर भस्म या रक्तचंदन हो, हाथ में काष्ठदंड, परशु एवं डम डिग्री हो और साथ में मृगचर्म हो;
14.
(3) “बीरावधूत” जिसके सिर के बाल दीर्घ तथा बिखरे हों, गले में हाड़ या रुद्राक्ष की माला पड़ी हो, कटि में कौपीन हो, शरीर पर भस्म या रक्तचंदन हो, हाथ में काष्ठदंड, परशु एवं डम डिग्री हो और साथ में मृगचर्म हो;
15.
शिवलिंग के प्रकार: शिवलिंगों के विभिन्न प्रकार का वर्णन पुराण में वर्णित है जिनमें गंधलिंग, पुष्पलिंग, रजोमयलिंग, लवणजललिंग, सीताखंडमय, दूर्वाकाण्डज के अलावा स्वर्ण, पारे, अष्टधातु, स्फटिक रक्तचंदन आदि से निर्मित शिवलिंग मुख्य हैं।
16.
” विजय के पिता पं. गंगाधर मिश्र और चचा पं. कृष्णशंकर रक्तचंदन का टीका लगाये, रुद्राक्ष की माला पहने, खङाऊं खट्खटाते हुये दरवाजे चौपाल में, नेवाङ के पलंग पर, धीर-गंभीर मुद्रा मॆं, सिर झुकाये हुये, आकर बैठ गये।