नाई को केवल रक्तमोक्षण तथा दाँत उखाड़ना आदि साधारण शल्यकर्म की आज्ञा थी और सर्जन के लिए बार्बर के व्यावसायिक कर्म निषिद्ध थे।
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उन्होंने रक्तमोक्षण के सम्बन्ध में अपने शोध की चर्चा की और यह बताया कि जलोका द्वारारोगी का रक्त मोक्षण कराकर उसको स्वस्थ बनाया जा सकता है.
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रक्तमोक्षण के मुख्य दो प्रकार होते हैं, शस्त्रद्वारा रक्तमोक्षण यानि किसी शस्त्र द्वारा काटकर रक्त का निकलना और शस्त्र रहित यानि जलौका (जोंक) द्वारा रक्त का निकलना ।
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रक्तमोक्षण के मुख्य दो प्रकार होते हैं, शस्त्रद्वारा रक्तमोक्षण यानि किसी शस्त्र द्वारा काटकर रक्त का निकलना और शस्त्र रहित यानि जलौका (जोंक) द्वारा रक्त का निकलना ।
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वैद्य लोग जानते हैं कि वमन, विरेचन, नस्य, स्वेदन, वस्ति, रक्तमोक्षण आदि शरीर-शोधन कार्यों के लिये आश्विन और चैत्र का महीना ही सबसे उपयुक्त है।
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पूर्वकर्मा थेरेपी के बाद टाक्सिन गैस्ट्रोइन्टेस्टाइनल ट्रैक में आ जाते हैं और उन्हें निकालने के लिए पंचकर्म थेरेपी करनी होती है | जैसे वमन, नस्य, विरेचन, रक्तमोक्षण और वस्ति।
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पंचकर्म की पाँच प्रमुख विधियाँ वमन कर्म, विरेचन कर्म, वस्ति कर्म, नस्य कर्म, रक्तमोक्षण कर्म के माध्यम से शरीर के विकारों को कैसे दूर किया जाता है, इसका सचित्र वर्णन पुस्तक में है।
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प्राचीन काल से ही इस क्रिया का आयुर्वेद मे प्रयोग किया जा रहा है, आज भी कुछ परम्परागत लोग रक्तमोक्षण यानि नस को काटते है जिससे विभिन्न रोगों का तुरंत नाश हो जाता है ।
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रोगियोंके अधुना शल्यकर्म के साथ ही विभिन्न यथा काय-~ चिकित्सा, पंचकर्म, रसायनबाजीकरण, क्षारकर्म, अग्नि-~ कर्म, रक्तमोक्षण व कल्पचिकित्सा के सुसज्जित विभागहों, जिनमें रोगियों के रोग-मुक्ति हेतु इन कर्मों की उपादेयता का प्रत्यक्षज्ञान प्रशिक्ष करके, उनका सफल उपयोग कर सकें.
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रोगियोंके अधुना शल्यकर्म के साथ ही विभिन्न यथा काय-~ चिकित्सा, पंचकर्म, रसायनबाजीकरण, क्षारकर्म, अग्नि-~ कर्म, रक्तमोक्षण व कल्पचिकित्सा के सुसज्जित विभागहों, जिनमें रोगियों के रोग-मुक्ति हेतु इन कर्मों की उपादेयता का प्रत्यक्षज्ञान प्रशिक्ष करके, उनका सफल उपयोग कर सकें.