…इस तरह एक ओर जहां राजेन्द्र यादव इस महाजनी युग की मूल वृत्ति के प्रभाव में नयी कहानियों की वस्तुवादी, जीवनोन्मुख धारा से किनारा कस चुके हैं, वहीं दूसरी ओर रचना-शिल्प के आन्तरिक गठन और निरंतर विकास के लिए उस छटपटाहट और बेचैनी को, जो उनकी प्रारंभिक कहानियों की सबसे बड़ी संम्भावना थी, खो चुके है।
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' ' उनकी काव्य-भाषा और रचना-शिल्प के स्वरूप पर यहां ज्यादा विस्तार में जाने की गुंजाइश नहीं है, फिर भी यह जान लेना आवश्यक है कि उनकी काव्य-भाषा के पीछे इसी मरुस्थलीय जीवन की कठिनाइयों-खासकर पानी की कमी और अभावों में पलते देहाती जीवन को उसी लहज़े और मुहावरे में रचने की कोशिश, उनकी कविता को लोक के बेहद करीब ला खड़ा करती है।
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इतिहास में भी एक अपना रस है, उस रस को सुरक्षित रखते हुए कृतिकार ने इस रचना-शिल्प के माध्यम से इतिहास और कथा-साहित्य को सम्मिलित रूप से समृद्ध किया है।... आगे...अकबर और तत्कालीन भारत इरफान हबीब पृष्ठ 327 मूल्य $ 24.95अकबर और तत्कालीन भारत... आगे...स्वतंत्रता संग्राम रामसेवक श्रीवास्तव पृष्ठ 169 मूल्य $ 4.95स्वतंत्रता संग्राम की झलकियाँ.... आगे...भारतीय अर्थतन्त्र इतिहास और संस्कृति अमर्त्य सेन पृष्ठ 326 मूल्य $ 34.95अमर्त्य सेन की चर्चित पुस्तक