रतिज प्राथमिक व्राण के होने के ६ सप्ताह बाद द्वितीयक उपदंश के लक्षण शरीर में उत्पन्न होते हैं।
12.
इनमें (१) उपदंश (Syphilis), (२) सुजाक (Gonorrhoea), लिंफोग्रेन्युलोमा बेनेरियम (Lyphogranuloma Vanarium) तथा (४) रतिज व्राणाभ (Chancroid), (५) एड्स (AIDS) प्रधान हैं।
13.
जननेंद्रिय पर या अन्यत्र कहीं, जीवाणुप्रवेश-स्थल पर, कड़ा, छोटा व्राण बनता है, जिस रतिज व्राण (chancre) कहते हैं तथा उसके पास की लसीकाग्रंथि फूल जाती है।
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जननेंद्रिय पर या अन्यत्र कहीं, जीवाणुप्रवेश-स्थल पर, कड़ा, छोटा व्राण बनता है, जिस रतिज व्राण (chancre) कहते हैं तथा उसके पास की लसीकाग्रंथि फूल जाती है।
15.
वेश्यावृत्ति का उन्मूलन सरल नहीं है, पर ऐसे सभी संभव प्रयास किए जाने चाहिए जिससे इस व्यवसाय को प्रोत्साहन न मिले, समाज की नैतिकता का ह्रास न हो और जनस्वास्थ्य पर रतिज रोगों का दुष्प्रभाव न पड़े।
16.
हृदय और रक्तपरिसंचरण संबंधी रोग तथा रक्तातिदाब (हाई ब्लड प्रेशर), रक्त संबंधी अन्वेषण, यकृतराग चिकित्सा, विसूचिका, कुष्ठ, मलेरिया तथा ऐं्थ्राोपॉएडों के अन्य रोग, ट्यूकर्क्युलोसिस (यक्ष्मा), रतिज रोग, बुद्धिमाप की विधियाँ, पोषणसर्वेक्षण, भारतीय जनता की शारीरिक, प्रामाणिक मापनाएँ (
17.
अधिवृक्क शोधक, एड्स, रक्त शोधक, एक्जिमा, मिर्गी, पागलपन, विषाद रोग बुखार, (आंतरायिक), बालों के झड़ने, प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने के (सफाई और पौष्टिक), दीर्घायु, स्मृति, स्नायु संबंधी विकार, सोरायसिस, बुढ़ापा, त्वचा शर्तों (पुरानी और हठी), रतिज रोगों, टिटनेस, आक्षेप, गठिया, हाथीपांव, आंत्र विकारों.
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हृदय और रक्तपरिसंचरण संबंधी रोग तथा रक्तातिदाब (हाई ब्लड प्रेशर), रक्त संबंधी अन्वेषण, यकृतराग चिकित्सा, विसूचिका, कुष्ठ, मलेरिया तथा ऐं्थ्राोपॉएडों के अन्य रोग, ट्यूकर्क्युलोसिस (यक्ष्मा), रतिज रोग, बुद्धिमाप की विधियाँ, पोषणसर्वेक्षण, भारतीय जनता की शारीरिक, प्रामाणिक मापनाएँ (norm) और मेडिकल कालेजों में हुए चिकित्सा तथा शरीर क्रिया संबंधी अन्वेषणों के आँकड़े एकत्र करना।
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हृदय और रक्तपरिसंचरण संबंधी रोग तथा रक्तातिदाब (हाई ब्लड प्रेशर), रक्त संबंधी अन्वेषण, यकृतराग चिकित्सा, विसूचिका, कुष्ठ, मलेरिया तथा ऐं्थ्राोपॉएडों के अन्य रोग, ट्यूकर्क्युलोसिस (यक्ष्मा), रतिज रोग, बुद्धिमाप की विधियाँ, पोषणसर्वेक्षण, भारतीय जनता की शारीरिक, प्रामाणिक मापनाएँ (norm) और मेडिकल कालेजों में हुए चिकित्सा तथा शरीर क्रिया संबंधी अन्वेषणों के आँकड़े एकत्र करना।
20.
विषैले तत्वों को शरीर से बाहर निकाल फेंकने की असीम शक्ति के कारण हरा रंग छूत या संक्रामक रोगों (खसरा, चेचक, टाइफाइड, मियादी बुखार) सूखी खाँसी, खुले घाव, नासूर, दाद, बहता एक्जिमा, रतिज रोग, सूजाक, गरमी, उपदंश, शोथ, शरीर के किसी भाग में पीप पड़ने की अवस्था (सेप्टिक होने पर) पथरी, उच्च रक्तचाप, मिर्गी, हिस्टीरिया, मरोड़वाली पेचिश, संग्रहणी, मुँह के छालों को दूर करता है ।