सम्पन्न होना कोई बुरी बात नहीं, परन्तु राष्ट्र-समाज का ध्यान रखे बिना केवल व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ति के लिए धन-संग्रह अपराध ही है।
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समय की आवश्यकता, राष्ट्र-समाज की आवश्यकता की पूर्ति में जीवन समर्पित हो पाँए इस हेतु अधिकांश समय व मनोभूमि का निर्माण करना चाहिए।
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उन्होंने अपने इन हथियारों को सिर्फ स्वतंत्रता के युद्ध के लिए ही नहीं, राष्ट्र-समाज के स्थायी जीवन-मूल्यों के रूप में भी स्थापित कर दिया।
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केवल सपने दिखाने और झूठे वायदे करने से राष्ट्र-समाज का विकास संभव नहीं है और वह भी उस समय, जबकि सरकारी अमला अपने निजी हित साधने में लगा हो.
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प्राकृतिक संसाधनों का अनाप-सनाप दोहन हुआ है जिसकी वजह से राष्ट्रीय संसाधनों का राष्ट्र-समाज के लिए उपयोग में नहीं कर सकने की विवशताएँ और नक्सलवाद जैसी चुनौतियां सामने आई हैं।
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प्राकृतिक संसाधनों का अनाप-सनाप दोहन हुआ है जिसकी वजह से राष्ट्रीय संसाधनों का राष्ट्र-समाज के लिए उपयोग में नहीं कर सकने की विवशताएँ और नक्सलवाद जैसी चुनौतियां सामने आई हैं।
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पत्रिका से कारपोरेट मीडिया भविष्य में राष्ट्र-समाज के लिए खतरे का सबब बनेगा पूँजी-प्रभुत्व से प्रकाशित अखबार और टीवी चैनल ने बाजारपरक होने के कारण पत्रकारिता जैसे पवित्र-कर्म को लील लिया है।
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यह स्थिति चिंताजनक होती है, क्योंकि किसी भी राष्ट्र-समाज के इतिहास पर प्रामाणिकता का संकट स्वयं उस राष्ट्र-समाज के अस्तित्व का संकट बन सकता है, जिससे उबरने के लिए लंबे समय और संघर्ष की जरूरत पड़ती है.
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यह स्थिति चिंताजनक होती है, क्योंकि किसी भी राष्ट्र-समाज के इतिहास पर प्रामाणिकता का संकट स्वयं उस राष्ट्र-समाज के अस्तित्व का संकट बन सकता है, जिससे उबरने के लिए लंबे समय और संघर्ष की जरूरत पड़ती है.
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इनमें से काफी लोग राष्ट्र-समाज की मुख्य धारा से अलग-थलग अपने पुरखों की परम्परा एवं रीति रिवाजों का संरक्षण करते हुए जीवन जीते चले आ रहे हैं और विकसित राष्ट्रीय, सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवेष को ये लोग बाहरी मानते हैं।