लोग कहते हैं प्रेम को पढने वाले कम हो गए पर मुझे लगता है प्रेम को करने वाले कम हो गए हैं जबकि पढने वालो की संख्या तो बढ़ रही है क्यूंकि प्रेम करना अब उतना आसान नहीं रहा (वैसे पहले भी आसान नहीं था) शायद इसीलिए लोग प्रेम पढ़कर जीवन में प्रेम की पूर्ती कर लेते हैं अब सामाजिक दीवारें तो हैं ही साथ ही साथ प्रेक्टिकल विचाधारा ने भी प्रेम की राह में रोड़े अटकाना प्रारंभ कर दिया है.