अरुण प्रकाश ने अपनी किताब ' गद्य की पहचान ' में उपन्यास को एक रूपबंध कहा था जिसमें कई विधाओं की आवाजाही हो सकती है।
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जिस ‘ सुभाषित रत् न ' को देवीप्रसाद वर्मा ने प्रथम मौलिक कहानी के रूप में प्रस्थापित करना चाहा, वह अपने रूपबंध (फार्म) में कहानी में न होकर संस्कृत के सुभाषितों का महत्व प्रस्थापन है।
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निस्संदेह, हिन्दी नाटक के परिप्रेक्ष्य में, और भाववस्तु और रूपबंध दोनों स्तर पर, ‘ आषाढ़ का एक दिन ' ऐसा पर्याप्त सघन, तीव्र और भावोद्दीप्त लेखन प्रस्तुत करता है जैसा हिन्दी नाटक में बहुत कम ही हुआ है।
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प्रसिद्ध कवि लीलाधर मंडलोई ने पुस्तक में संकलित आत्मकथात्मक और साहित्यिक विमर्शों की चर्चा करते हुए इस पुस्तक के नए रूपबंध के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि इसमें साहित्य की विभिन्न विधाओं के बीच की आवाजाही एक नए और सार्थक रूप में दिखाई पड़ती है।