' (पृ. १४५) डॉ. देवीशंकर द्विवेदी ने रूपविज्ञान के स्वरूप का चित्रण करते हुए लिखा है कि, "मोटे तौर पर मर्षविज्ञान में शब्दों के गठन अर्थात् उनके संघ-~ टक तत्वों काविवेचन किया जाता है.
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इसलिये इन विद्वानों के विचारों के अध्ययनोप-~ रान्त रूपविज्ञान को इसप्रकार परिभाषित किया जा सकता है-रूपविज्ञान, भाषाविज्ञान की वह शाखा है जिसमेंरूपग्रामों के अर्थ और स्वरूप, उनके अनु-~ क्रम, उनकी प्रतीति और प्रकार्य आदि केआधार पर उनके भेदोपभेदों का किसी भाषा विशेष की संरचना के सन्दर्भ मेंअध्ययन-विश्लेषण किया जाता है.
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' हॉकेट' और 'ग्लीसन' जैसे विद्वानों ने अपनी कृतियों में रूपविज्ञान की कहींस्पष्ट परिभाषा नहीं दी लेकिन जिस रूप में इन्होंने भाषाविज्ञान की इस विधा काविश्लेषण किया है यदि उसका ध्यानपूर्वक विवेचन किया जाय तो यह बात यथेष्ट रूपमें स्पष्ट हो जाती है कि शब्द-गठन का यह कार्य किन दिशाओं अथवा रूपों में कियाजाता है.