इस पूरी प्रक्रिया में ज्ञान-विज्ञान का जो विकास हुआ उसने रूपांतरकारी भूमिका निभाई और समाज के बौद्धिक वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले बुद्धिजीवियों ने यह लड़ाई कंधे से कंधा मिलाकर लड़ी तथा कलम के इस क्रांतिकारी इस्तेमाल के खतरे भी उठाये।
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इसके लिये वे भारत के मध्यकाल के स्वर्णकाल के रूप में भक्ति को एक आंदोलन की तरह खड़ा करते हैं और वे जो योगमूलक धाराएं थीं-उनके चिंतनमूलक व रूपांतरकारी आधार को कमजोर करने के लिये वे उन्हें भी भक्ति के ही रूपों में शुमार कर लेते हैं.
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इसके लिये वे भारत के मध्यकाल के स्वर्णकाल के रूप में भक्ति को एक आंदोलन की तरह खड़ा करते हैं और वे जो योगमूलक धाराएं थीं-उनके चिंतनमूलक व रूपांतरकारी आधार को कमजोर करने के लिये वे उन्हें भी भक्ति के ही रूपों में शुमार कर लेते हैं.
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तो, मुगलकाल और फिर औपनिवेशिक दौर में जिस तरह धीरे-धीरे कबीर, रैदास या नानक का रूपांतरकारी चिंतन, तब के हालात के मद्देनजर, भक्ति की चेतना की गिरफ्त में आता गया, उसी का नतीजा यह निकला कि औपनिवेशिक दौर में अंग्रेज, मध्यकाल की इन तमाम चिंतनधाराओं को, भक्ति के खूंटे से बांधे रखने में कामयाब हो गये.
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उनके विचार से यूरोप की राजनीतिक संस्कृति वामपंथ और दक्षिणपंथ के परस्पर-विरोध पर आधारित है, इसलिए यूरोपीय राजनीति की विशेषता यह रही है कि उसका एक रूपांतरकारी पक्ष हमेशा मौजूद रहा है ; जबकि अमरीका की राजनीतिक संस्कृति ‘ कंसेंसस ' (सहमति) पर आधारित होने के कारण राजनीति के रूपांतरकारी पक्ष को नष्ट कर देती है।
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उनके विचार से यूरोप की राजनीतिक संस्कृति वामपंथ और दक्षिणपंथ के परस्पर-विरोध पर आधारित है, इसलिए यूरोपीय राजनीति की विशेषता यह रही है कि उसका एक रूपांतरकारी पक्ष हमेशा मौजूद रहा है ; जबकि अमरीका की राजनीतिक संस्कृति ‘ कंसेंसस ' (सहमति) पर आधारित होने के कारण राजनीति के रूपांतरकारी पक्ष को नष्ट कर देती है।
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अध्ययन में शामिल व्यक्तियों ने विशेषकर स्वास्थ्य के प्रति एक समग्र रुझान की सूचना दी, एक रूपांतरकारी अनुभव, जिसने उनका नजरिया तथा पहचान बदल दिया, और कई सारे समूह पर्यावरणवादी, नारीवादी, मनोविज्ञान तथा/या आध्यात्मिकता, तथा व्यक्तिगत विकास रुझान का संकेत दिया, भले ही वे कई प्रकार के छोटे रोगों, विशेषकर चिंताग्रस्तता, रीढ़ की समस्या तथा पुरानी पीड़ा से पीड़ित थे.
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तो, मुगलकाल और फिर औपनिवेशिक दौर में जिस तरह धीरे-धीरे कबीर, रैदास या नानक का रूपांतरकारी चिंतन, तब के हालात के मद् देनजर, भक्ति की चेतना की गिरफ्त में आता गया, उसी का नतीजा यह निकला कि औपनिवेशिक दौर में अंग्रेज, मध्यकाल की इन तमाम चिंतनधाराओं को, भक्ति के खूंटे से बांधे रखने में कामयाब हो गये.
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और जब स्थिरता होती है, जब कोई इच्छा, कोई ललक नहीं रहती, जब ऐसी स्थिरता सहित जिसे प्रवृत्त नहीं किया गया है, लादा नहीं गया है, मन खामोश होता है, तब यथार्थ का आगमन होता है एवं वह सत्य, वह यथार्थ ही एकमात्र रूपांतरकारी तत्व है, केवल यही वह कारक है, जो हमारे अस्तित्व में, हमारे दैनिक जीवन में एक आधारभूत, आमूल क्रांति लाता है।