जैसे रेशम का कीड़ा अपने चारों ओर एक कीमती चीज़ बुनता है और मौत को बुलावा देता है (वैसे ही) मौत अपने चारों ओर कहानी बुनती है, जिसका नाम ज़िन्दगी है।
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मुझे लगता है जैसे रेशम का कीड़ा अपनी ही लिसलिसाहट में से रेशम को जन्म देता है उसी तरह एक रचना के प्रकाशित होने का सुख दूसरी रचना के जन्म का कारण बनता है।
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जैसे रेशम का कीड़ा अपने चारों ओर एक कीमती चीज़ बुनता है और मौत को बुलावा देता है (वैसे ही) मौत अपने चारों ओर कहानी बुनती है, जिसका नाम ज़िन्दगी है।
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शहतूत बेचने वालों ने रेशम का कीड़ा ईजाद किया शायरी ने रेशम से लड़कियों के लिबास बनाये रेशम में मलबूस लड़कियों के लिए कुटनियों ने अन्तःपुर ईजाद किया जहाँ जाकर उन्होंने रेशम के कीड़े का पता बता दिया
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शहवत बेचने वाले ने रेशम का कीड़ा ईजाद किया शायरी ने रेशम से लड़कियों के लिये लिबास बनाए रेशम में मलबूस लड़कियों के लिए कुटनियों ने महलसरा ईजाद की जहां जाकर उन्होंने रेशम के कीड़े का पता बता दिया
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जैसे रेशम का कीड़ा बनाता है घर अपने ही थूक से मर जाता है सूत में अपने ही उलझ कर जल रहीं हूँ मन की इच्छाओं के पीछे भाग भाग कर दूर कर तृष्णाएँ मेरी दे अपने चरणों में स्थान हे चेनामल्लिक अर्जुना!
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प्रस्तुत सूत्र में इस दृष्टान्त का यह अर्थ करना उपयुक्त न होगा कि रेशम का कीड़ा जैसे कोश अर्थात् खोल बनाकर स्वयं उसमें समाविष्ट हो जाता है, ऐसे ही प्रकृति अथवा आत्मा स्वयं बन्ध या मोक्ष को प्राप्त करते हैं ॥ 3 / 73 ॥
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बुनकर कविता में जो दर्द है, वह हवाई नहीं है, बल्कि उनके संघर्ष में रचा-बसा-सांस लेने वाला ही लिख सकता है-मैं रेशम का कीड़ा होता / तो / पहले खाता फिर कमाता / आदमी होता / तो / पहले कमाता फिर खाता / आप ही बताइए / मैं कौन सी प्रजाति हूं / पहले और बाद में केवल कमाता हूं / कब्र की मिट्टी के अलावा / कुछ नहीं खाता हूं।