प्रतिबंध लगनेपर सनातनके आश्रमोंका क्या होगा? ग्रंथोंका तथा उत्पादोंका क्या होगा?, ऐसा विचार हमारे मनमें आनेपर यह समझें कि हमें इसका विस्मरण हो गया है कि यह सब माया है ।
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परन्तु दूसरे दिन वह जंगलमें उस मैलेका त्याग कर देता है तो हवा, धूप, वर्षा आदिके कारण वह मैला समय लगनेपर स्वतः मिट्टीमें मिलकर मिट्टी ही बन जाता है और इतना शुद्ध हो जाता है कि पता ही नहीं लगता कि मैलापन कहाँ था! वह मिट्टी दूसरी वस्तुओं (बर्तन आदि) को भी शुद्ध कर देती है ।