वो दिन लदे भी अब सालों हो गए जब लेटर प्रेस पर अखबार छपा करते थे ।
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इसके अर्न्तगत कुछ समय पहले तक धातु की ढलाई करके बने हुए अक्षरों से लेटर प्रेस मशीन द्वारा छपाई होती थी।
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लेकिन हमारे युनिवर्सिटी के पत्रकारिता के छात्रों को अब भी लेटर प्रेस और मुद्रण की विधियां पढाई जा रही है ।
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अभी तक मुझे उसका कोई रिप्लाई नहीं मिला है, लेकिन लेटर प्रेस में लीक हो गया, इसलिए सबको पता चल गया।
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1982 में जब मैं अपना लेटर प्रेस स्थापित करने जा रहा था तो टाइप खरीदने के लिए मैं काशी टाइप फाउण्डरी से कोटेशन मांगी थी।
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हिन्दी साप्ताहिक का समूचा अंक तैयार करने में मेरे पतिदेव (जब तक लेटर प्रेस था) पूरी सहायता करते थे-जैसे समाचारों का संकलन, अग्रलेख, सम्पादकीय, प्रूफ संशोधन आदि सभी में उनका सहयोग रहा है।
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प्रश्न-एक दौर था जब लेटर प्रेस पर पुस्तकें छपती थीं इसमें समय भी अधिक लगता था और गुणवत्ता भी उतनी नहीं रहती थी |आज तकनीक बहुत विकसित है ऐसे में प्रकाशन व्यवसाय पर क्या असर पड़ा है |
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इस तकनीक के अन्तर्गत लेटर प्रेस / ऑफ़सेट प्रिंटिंग / डिजिटल ऑफ़सेट प्रिंटिंग / डिजिटल प्रिटिंग / साल्वेन्ट प्रिंटिग (फ्लैक्स / विनायल / वन वे विजन छपाई) स्क्रीन प्रिंटिंग आदि छपाई कला से जुड़ी तकनीकों को सिखाया जाता है।
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लडकियां डाटा प्रिपेशन एंड कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, स्टेनो (हिंदी-अंग्रेजी), हैंड कंपोजिटर, कढाई-बुनाई, ब्यूटीशियन एंड हेयर ड्रेसिंग, टेक्सटाइल डिजाइनिंग, कॉमर्शियल आर्ट, प्रॉसेस कैमरामैन, फोटोग्राफर, लेटर प्रेस मशीन माइंडर कटिंग एंड टेलरिंग, कढाई व कसीदाकारी, सीसी एवं होम मैनेजमेंट, बुक बाइंडर तथा ड्रेस डिजाइनिंग आदि के एक वर्षीय नॉन-इंजीनियरिंग पाठयक्रम में दाखिला पा सकती हैं।
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इसलिए आवश् यक है, इस क्षेत्र में निजी निवेशकर्ताओं की अन्यथा एक ही साथ आरम्भ हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन आज पांच दशक बाद नेपाली पत्र-पत्रिकाओं से आकाश-पाताल की दूरी पर नहीं रहता जबकि निकटवर्ती भारतीय क्षेत्र से करोड़ों रूपये मूल्य के हिन्दी पत्र-पत्रिकायें नेपाल में खपत होती है तो फिर नेपाल से प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं का उत्थान क्यों नहीं होगा? किन्तु उस दैनिक को छोड़कर किसी के पास लेटर प्रेस तक नहीं है फिर ऑफसेट प्रेस की बात तो दूर होने पर नेपाल के हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं के विकास कब और कैसे होंगे ।