| 11. | मेरी चित्तवृत्ति में लोक काव्य के ये बीज भी स्फुरित होते रहे।
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| 12. | मेरी चित्तवृत्ति में लोक काव्य के ये बीज भी स्फुरित होते रहे।
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| 13. | लोक काव्य की कल्पनाएं भी उत्कृष्ट साहित्य से कम प्रभावित नहीं हुई।
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| 14. | ५ लोक काव्य का शिल्प-लोक साहित्य का काव्य-शिल्प निरन्तर उपेक्षा का विषयरहा है.
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| 15. | इस लोक काव्य का क्या मूल रूप था? यह खोजना कठिन है।
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| 16. | वस्तुतः उनकी रचनाएं लोक काव्य तथा परिनिष्ठित काव्य की सेतु कही जा सकती हैं.
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| 17. | ये लोक गीत सीधे सीधे कविता की श्रेणी में न आती हुई भी लोक काव्य
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| 18. | ४ मूल कथा का स्वरूप-इस लोक काव्य का क्या मूल रूप था? यह खोजना कठिन है.
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| 19. | बिरहा चूँकि लोक काव्य है, इसलिए इसके प्रत्येक चरणों में समान मात्राएँ या वरण नहीं होते हैं।
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| 20. | बिरहा चूँकि लोक काव्य है, इसलिए इसके प्रत्येक चरणों में समान मात्राएँ या वरण नहीं होते हैं।
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