लोक-स्मृति का शाश्वत अंग और जनश्रुति का नायक बन चुके पंकज की भी सुधि हिन्दी-जगत तथा इतिहास के मठाधीशों ने कभी नहीं ली.
12.
औपनिवेशिक आधुनिकता में रची-बसी ‘खोज-दृष्टि ' कबीर के समाज की लोक-स्मृति को ही नहीं, स्वयं कबीर को भी ऐसी कृपादृष्टि से देखती है जिसे कबीर अबोध बच्चे से नजर आते हैं, जो अपने घर का पता तक ठीक से नहीं बता पाता।
13.
एक लाख मवेशियों का कारवां लेकर चलने वाला लाखा बंजारा और नायकों के स्वामिभक्त कुत्ते का कुकुरदेव मंदिर सहित उनके खुदवाए तालाब, लोक-स्मृति में खपरी, दुर्ग, मंदिर हसौद, पांडुका के पास, रतनपुर के पास करमा-बसहा, बलौदा के पास महुदा जैसे स्थानों में ज
14.
औपनिवेशिक आधुनिकता में रची-बसी ‘ खोज-दृष्टि ' कबीर के समाज की लोक-स्मृति को ही नहीं, स्वयं कबीर को भी ऐसी कृपादृष्टि से देखती है जिसे कबीर अबोध बच्चे से नजर आते हैं, जो अपने घर का पता तक ठीक से नहीं बता पाता।
15.
एक लाख मवेशियों का कारवां लेकर चलने वाला लाखा बंजारा और नायकों के स्वामिभक्त कुत्ते का कुकुरदेव मंदिर सहित उनके खुदवाए तालाब, लोक-स्मृति में खपरी, दुर्ग, मंदिर हसौद, पांडुका के पास, रतनपुर के पास करमा-बसहा, बलौदा के पास महुदा जैसे स्थानों में जीवन्त हैं।
16.
देखिये मैंने कहा, कुछ विद्वानों का मत है कि सीता-वनबास हुआ ही नहीं, क्योंकि तुलसी की रामचरित मानस एवं महाभारत के रामायण प्रसंग में इस घटना का रंचमात्र भी उल्लेख नहीं है, अतः बाल्मीक रामायण में यह प्रसंग प्रक्षिप्त है, बाद में डाला गया, राम को बदनाम करने हेतु | परन्तु मेरे विचार से जन-श्रुतियां, लोक-साहित्य व स्थानीय प्रचलित कथाये आदि में कुछ अनकही बातें अवश्य होती हैं जो लोक-स्मृति में रह जाती हैं | जिन्हें पात्र की महत्ता व संगति से विपरीत मानकर सामाजिक-साहित्यकार-रचनाकार छोड़ भी सकते हैं |