पिछले 10 वर्षों र्में सरकार ने 10 लाख हेक्टयर जमीन बेंची है, अपनी यानी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में बहुत सी हिस्सेदारी बेचीं है, रेलवे ने अपनी जमीनें बेंची हैं, जो जंगल समुदाय की पारंपरिक संपत्ति है, उसके पेड़ और उसका खनिज बेचा है, कोयले, बाक्साईट, लोहा पत्थर और संगमरमर के लिए जमीनों के खनन की अनुमति दी है जिससे लाखों हेक्टयर जमीन लम्बे समय के लिए बेकार हो गई।
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कारो नदी के किनारे किनारे जिसे बाज़ार में बेच कर घर चल जाता है, पर अब कारो नदी में टाटा, जिंदल, रुंगटा के खदान का कचड़ा ज्यादा आने लगा है जिससे नदी भी सूख गयी है और हमें उतना ज्यादा पत्ता नहीं मिल पाता है, जबकि पहले के दिनों में खदानों से लाल पानी कम आया करता था और लोहा पत्थर वो लोग नदी में नहीं डाला करते थे अब तो वही लोग नदी पर कब्ज़ा कर नदी को भी ख़तम कर दिए है और जंगल को भी उजाड़ने में लगे हुए है.