वे सूरदास, नन्ददास आदि कृष्णभक्तों की भांति जन-सामान्य से संबंध-विच्छेद करके एकमात्र आराध्य में ही लौलीन रहने वाले व्यक्ति नहीं कहे जा सकते बल्कि उन्होंने देखा कि तत्कालीन समाज प्राचीन सनातन परंपराओं को भंग करके पतन की ओर बढ़ा जा रहा है।
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तुलसी के दोहे स्वारथ के सब ही सगे, बिन स्वारथ कोई नाहिं सेवें पक्षी सरस तरु, निरस भये उड़ जाहिं नीच नीच सब तरि गए, सन्त चरण लौलीन जातिहि के अभिमान ते, डूबे बहुत कुलीन रचयिता-गोस्वामी तुलसी दास प्रस्तुति-अलबेला खत्री
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तुलसी के दोहे स्वारथ के सब ही सगे, बिन स्वारथ कोई नाहिं सेवें पक्षी सरस तरु, निरस भये उड़ जाहिं नीच नीच सब तरि गए, सन्त चरण लौलीन जातिहि के अभिमान ते, डूबे बहुत कुलीन रचयिता-गोस्वामी तुलसी दास प्रस्तुति-अलबेला खत्री...
14.
हम ऊपर के किसी बयान में लिख आये हैं कि जिस समय नानक अपने मित्र की ज्याफत में तन-मन-धन और आधे शरीर से लौलीन हो रहा था उसी समय उस पर वज्रपात हुआ, अर्थात एक नकाबपोश ने उसके बाप की दुर्दशा का हाल बताकर उसे अंधे कुएं में ढकेल दिया।
15.
वह मेरी कलाई पर कंगन न देखगें तो क्या कहेंगे? कहीं रुठ कर चले न जायँ? वह कहीं रिसा गये तो उनको कैसे मनाऊँगी? मगर तबिय ता क़ायदा है कि जब कोई बात उसको अति लौलीन करनेवाली होती है तो थोड़ी देर के बाद वह उसे भागने लगती है।