वचन-भंग होता देख घायल तेजाजी ने अपना मुँह खोल कर जीभ सर्प के सामने फैला दी थी और सर्प ने उसी पर अपना दंश रख कर उनके प्राण हर लिए थे।
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वचन-भंग होता देख घायल तेजाजी ने अपना मुँह खोल कर जीभ सर्प के सामने फैला दी थी और सर्प ने उसी पर अपना दंश रख कर उनके प्राण हर लिए थे।
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सत्य, न्याय, वचन-पालन और अमानत को सदा ही मानवीय नैतिक सीमाओं में प्रशंसनीय माना गया है और कभी कोई ऐसा युग नहीं बीता जब झूठ, जु़ल्म, वचन-भंग और ख़ियानत को पसन्द किया गया हो।
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अधीर हो मार्ग रोक कर खड़े हो गये, ' नहीं. इसे नहीं. छोड़ दो इसे. पुत्र है मेरा, नहीं, जल-समाधि नहीं देने दूँगा. ' रुक गईं गंगा और वचन-भंग के परिताप के कारण पुत्र को ले उन्हें त्याग कर चली गईँ.