जब वे लौटकर महर्षि वदान्य के पास आये तो उन्होंने उनसे उनकी यात्रा का सारा वृत्तान्त पूछा और फिर अपने मन में पूर्णतः सन्तुष्ट होते हुए अपनी कन्या का पाणिग्रहण उनके साथ कर दिया।
12.
तब महर्षि वदान्य ने मुस्कराते हुए अष्टावक्र से कहा, ‘‘ पुत्र! मैं अवश्य तुम्हारी इच्छा पूरी करूँगा और तुम्हारे साथ ही अपनी कन्या का पाणिग्रहण करूँगा ; लेकिन इसके लिए तुम्हें मेरी एक आज्ञा माननी पड़ेगी।
13.
तुम्हारा रूप देखकर तो अब मेरे रोम-रोम में एक मादकता भर गयी है और मेरे अन्दर कामोद्दीपन हो उठा है लेकिन मुझे महर्षि वदान्य की सुन्दरी कन्या का भी ध्यान है, जिसके कारण मैं इस कठिन परीक्षा के लिए अपने स्थान से चला हूँ।