इस सुरम्य स्थल को वन्य जीवन की प्रयोगशाला बनाकर बिली अर्जन सिंह ने ५० वर्ष से अधिक वन व वन्य जीव सरंक्षण में महत्व पूर्ण भूमिका निभाते रहे।
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तो वही दुसरी और इससे प्राप्त होने वाली सेवाओं जैसे चरनोई, वन्य जीव सरंक्षण, कार्बन अवशेष, एंव खाद्य नियंत्रण को भी इसमें शामिल किया गया है।
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बैठक में वन्य जीव सरंक्षण के प्रयासों को नए सिरे से संगठित करने के लिए केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय में वन और वन्यजीव मामलों के लिए अलग विभाग बनाने पर मुहर लगी।
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द्वितीय विश्व युद्ध के उपरान्त बिली ने खीरी के जंगलों को अपना घर बना लिया और यहीं रह कर पचास वर्षों तक वन्य जीव सरंक्षण में अपना अतुलनीय योगदान दिया, जो आज पूरी दुनिया में एक मिसाल है।
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सिर्फ़ नेपाल के सीधे-साधे अशिक्षित व भोले-भले लोगों पर आरोप लगाकर अपनी गलतियों, को छुपाने का प्रयास भले ही कर ले, किन्तु इससे वन व वन्य जीव सरंक्षण के लम्बे चौड़े दावे भोथरे ही साबित होंगे।
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द्वितीय विश्व युद्ध के उपरान्त बिली ने खीरी के जंगलों को अपना घर बना लिया और यहीं रह कर पचास वर्षों तक वन्य जीव सरंक्षण में अपना अतुलनीय योगदान दिया, जो आज पूरी दुनिया में एक मिसाल है।
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संस्था निदेशक चन्दन सिंह भाटी ने बताया की वन्य जीव सरंक्षण सप्ताह एक अक्टूबर से आरम्भ हो रहा हैं, संस्था वृहद स्तर पर इसे आयोजित कर आम जन को वन्य प्राणियों के सरंक्षण के प्रति जागरूक करने का प्रयास करेगी।
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राजकुमार महोबिया (लेखक उमरिया, मध्यप्रदेश के निवासी है, पेशे से अध्यापक, शौक चित्रकारी, पर्यावरण सरंक्षण, अपने क्षेत्र में नारों की पेन्टिंग कर जल सरंक्षण के महत्व को बतलाने में सफ़ल भूमिका, वन्य जीव सरंक्षण के मसलों में जन-जागरूकता अभियानों की अगुवाई, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेखन, इनसे दूरभाष द्वारा 09893870190 पर संपर्क किया जा सकता हैं)
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इन इलाकों में वन्य जीव सरंक्षण में काम करने वाली सन्स्थाओं को उन सड़्कों से गुजरने वालें वहनों के चालकों को इस बात से अवगत कराया जाये कि वन्य जीवों का महत्व क्या है और उन्हे कानून का हवाला देने के बजाये जीवों के प्रति दया भाव व पारिस्थितिकी तन्त्र में उनकी अहम भूमिका से अवगत करायें।
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हमने हिन्दुस्तान और दुनिया के तमाम प्रतिष्ठित लोगों से मशविरा किया, जिन्होंने वन्य जीव सरंक्षण में महारथ हासिल की है, इस सन्दर्भ में आई एफ़ एस और वन्य जीव फ़ोटोग्राफ़र व भारत सरकार के कई व्यक्तियों से सलाह ली कि आखिर दुधवा लाइव को हिन्दी के पथ पर ही अग्रसर करे या कोई अन्य विकल्प का सहारा लिया जाए।