लौकी में पुष्प खिलने के ठीक पहले (दोपहर 1 से 4 बजे) वर्तिकाग्र अधिकतम ग्राही होता है।
12.
अंडाशय में दो अंडाणु वाले, वर्तिका सूत्राकार गोल जुड़ी होती है और वर्तिकाग्र आकर्षक होता है।
13.
पुष्पन सुबह 5. 30 से 9.30 बजे तक होता है तथा इसी समय मादा फूल में वर्तिकाग्र अत्यन्त सुग्राही होता है।
14.
इसके तीन मुख्य भाग हैं: नीचे चौड़ा अंडाशय, उसके ऊपर पतली वर्तिका (style) और सबसे ऊपर टोपी जैसा वर्तिकाग्र (stigma)।
15.
फल के शीर्ष भाग पर त्रिरश्म्याकार (ट्राइरेडिएट, triradiate) वर्तिकाग्र (स्टिग्मा, stigma) और आधार पर लगभग चार मिलीमीटर लंबी वृंत सदृश बाह्यवृद्धि उपस्थित रहती है।
16.
और पानी की सतह पर परागण की प्रक्रिया सम्पन्न होती है, जिसमें नर पुष्प का पुंकेसर मादा के वर्तिकाग्र से होकर अंडाशय तक पहुँचता है।
17.
पुष्प खिलने के समय नर पुष्प में अत्यिधिक जीवित परागण मिलते हैं तथा मादा फूल में वर्तिकाग्र भी निषेचन के लिए अधिकतम ग्राही होता है।
18.
पुष्पन के दौरान नर पुष्पों से जीवित व सक्रिय परागकण प्राप्त होते हैं, साथ ही मादा पुष्पों की वर्तिकाग्र निषेचन के लिए अत्यधिक सक्रिय होती है।
19.
[9] बीजाण्ड एक प्रक्रिया जिसे परागण कहते हैं, द्वारा निषेचित होता है, इस प्रक्रिया मे पराग कण पुष्पों के पुंकेसर से वर्तिकाग्र को संचारित होते हैं।
20.
अगर पराग उसी फूल के वर्तिकाग्र पर पड़े तो इसे स्वपरागण (Self-pollination) कहते हैं और अगर अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र पर पड़े तो इसे परपरागण (Cross-pollination) कहेंगे।