अग्रवाल जी ने बड़ी चालाकी से मार्क्स का सहारा लेकर श्रम और आध्यात्मिकता के अलगाव और उनके वस्तूकरण को दो अलग अलग घेरों के रूप में व्याख्यायित किया है.
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कुम्भकोणम के स्कूल में अग्निकांड, 25 अगस्त 2007 को लुंबिनी पार्क और गोकुल चाट भंडार में आतंकवादी बम विस्फोट, सुनामी का विध्वंस, तस्लीमा नसरीन पर हमला, प्लांट पेटेंट, जीन लाइसेंसिंग, बाज़ार की भ्रष्ट राजनीति, शिक्षा तंत्र द्वारा लूट-खसोट, स्त्री का वस्तूकरण आदि घटनाएं डॉ. भवानीदेवी के संवेदनशील मन को झकझोरती हैं.
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सवाल यह है कि हम जो बार बार ऐसे तमाम विज्ञापनों से आहत होते रहते हैं जिनमें स्त्री का वस्तूकरण किया जाता है, उसे उपभोग के माल की तरह पेश किया जाता है-यदि वास्तव में वे हमें आहत करते हैं तो हम उनका विरोध क्यों नहीं करते? उपभोक्ता संस्कृति को अपने इस प्रतिरोधी चरित्र को पहचानना होगा वरना उपभोक्तावाद उसे निगल जाएगा.