हालांकि पुराने जमाने (यूनानी काल) में भी नृ-विज्ञान विषय का अध्ययन होता था ; लेकिन वाणिज्यवाद और अन्वेषण युग में यह विषय फलने-फूलने लगा था।
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स्मिथ हमेशा से वाणिज्यवाद के खिलाफ थे, जिसमें व्यापार अधिशेष (ट्रेड सरप्लस) को इस त्रुटिपूर्ण सोच के साथ कायम रखा जाता है कि इससे धन में इजाफा होता है।
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वाणिज्यवाद (mercantilism) का मुख्य उद्देश्य विदेशी व्यापार को इस तरह से संगठित करना था जिससे देश के अंदर दूसरे देशों से सोना एवं चाँदी बराबर अधिक मात्रा में आती रहे।
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वाणिज्यवाद (mercantilism) का मुख्य उद्देश्य विदेशी व्यापार को इस तरह से संगठित करना था जिससे देश के अंदर दूसरे देशों से सोना एवं चाँदी बराबर अधिक मात्रा में आती रहे।
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इस युद्घ के लिए वैकल्पिक शब्द के रूप में वाणिज्यवाद को इस्तेमाल किया जा सकता है क्योंकि इसका लक्ष्य है पूंजी को बाहर भेजना और उसे वापस अपने यहां आने देने से रोकना ताकि विभिन्न मुद्राओं में प्रतिस्पर्धा बरकरार रहे।
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शुक्लजी ने तत्कालीन सामाजिक स्थिति का वर्णन करते हुए लिखा है कि ईस्ट इंडिया कम्पनी के रूप में घृणित वाणिज्यवाद ने भारत में कदम रखा और समाज के द्विस्तरीय विभाजन के आधार पर जो सामंजस्य इतने दिनों से चला आ रहा था उसे अस्त-व्यस्त कर दिया।
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इस अर्थ में उनका स्व-परिभाषित कार्य आधुनिकता के बढ़ते खतरों के विरुध्द संस्कृति के हितों की रक्षा करना था, जिसका निरूपण बौध्दिक विशिष्टीकरण या औद्योगिक प्रौद्योगिकी या वाणिज्यवाद या ' साधारण समाज ' के रूप में किया जा सकता है और जिसके लिए पुराशास्त्रीय संक्षिप्त शब्द ' सभ्यता ' थी।
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इस अर्थ में उनका स्व-परिभाषित कार्य आधुनिकता के बढ़ते खतरों के विरुध्द संस्कृति के हितों की रक्षा करना था, जिसका निरूपण बौध्दिक विशिष्टीकरण या औद्योगिक प्रौद्योगिकी या वाणिज्यवाद या 'साधारण समाज' के रूप में किया जा सकता है और जिसके लिए पुराशास्त्रीय संक्षिप्त शब्द 'सभ्यता' थी। सांस्कृतिक आलोचना (कल्चुरीक्रितिक) प्राय: संभ्रांतवर्गीय थी; यहएक अकाटय सत्य था कि संस्कृति हमेशा कुछ लोगों का ही सरोकार होना चाहिए जिसे सामान्य उदासीनता और अबोध्यता की स्थिति में जारी रखा जाना चाहिए।