मन प्रभु पर ऐसे स्थिर हो जैसे वायु रहित स्थान में रखे दीपक की ज्योति स्थिर रहती है, मन गुण तत्त्वों जैसे आसक्ति, कामना, क्रोध, लोभ, मोह, भय एवं अहंकार का द्रष्टा बना रहे और मन इन्द्रियों का भी द्रष्टा बना रहे तब वह योगी योगारूढ़ स्थिति में होता है जहां से वह कभीं भी समाधि में सरक सकता है //