एक सामग्री का उत्सर्जन बताता है कि एक वास्तविक पदार्थ एक काले पदार्थ की तुलना में कितनी अच्छी तरह ऊर्जा का विकिरण करता है.
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अगर वह अंदर देख सकते हैं, वह वास्तविक पदार्थ वहाँ मिल जाएगा, लेकिन अगर वह व्यक्तित्व के साथ रहता है वह अक्सर खाली है, भूसी खत्म हो जाएगा.
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इसकी विशेष मान्यता यह है कि परमनिरपेक्ष ही अंतिम तत्व है, और परमनिरपेक्ष संपूर्ण तंत्र अथवा विश्व भी है, मानसिक अथवा आध्यात्मिक भी, और एक भी, सभी वास्तविक पदार्थ और विशेषतया आदर्श अर्थात् मूल्यांकन विषय एवं प्रत्यय अर्थात् बोध विषय उसके अंदर हैं।
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विवेकदृष्टि से पृथक-पृथक विभाग से संशोधन करने पर तो पंचभूत से अतिरिक्त कोई भी पदार्थ नहीं है अर्थात् अविवेकी पुरुष ही मोहवश पंचमहाभूतविकार जगत को सत्य समझता है, पर जो विवेकी हैं, उनको तो इस जगत में पंचमहाभूतसमुदाय से अतिरिक्त कोई वास्तविक पदार्थ प्रतीत नहीं होता।।
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ओउम) ; १ ४ = अब में एक से बहुत होजाऊँ, ईश्वर का आदि सृष्टि संकल्प) ; १ ५ = वास्तविक पदार्थ रचना ; १ ६ = व्यक्त मूल प्रकृति की शांत, साम्य, अवस्था, बिना किसी गति, हलचल के ; १ ७ = बिना टकराव के उत्पन्न ईश्वरीय आदि ध्वनि..