अपने पहले सिद्धांत में मार्क्स ' अब तक के आर्विभूत अस्तित्व' के भौतिकवाद और विचारवाद के प्रति अपनी आपत्ति दर्ज करवाते हैं.
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आज विद्वानों में अमूमन सहमति है कि प्रेमचंद का वैचारिक पक्ष शुरूआती दौर में ' विचारवाद ‘ एवं ' व्यवहारवाद ` के करीब था।
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देखा जाये तो क्षेत्रवाद, जातिवाद, धर्म तथा विचारवाद पहले से ही देश में मौजूद हैं अंतर्जाल पर हिन्दी में सक्रिय लेाग उससे अपने को अलग रख नहीं पाये हैं।
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हिन्दी के बहाने हिन्दी लेखक बिरादरी पर भी चर्चा करने से हमें गुरेज़ नहीं करना चाहिए कि विचारवाद के सम्मोहन से हिन्दी का विकास तो निश्चित रूप से हुआ है।
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दरअसल यूरोप में हीगेल आदि दार्शनिकों ने जिस विचारवाद या आइडियलिज्म (Idealism) को प्रश्रय दिया और उसका समर्थन किया है वह बहुत कुछ गीता के समदर्शन से मिलता-जुलता है।
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देखा जाये तो क्षेत्रवाद, जातिवाद, धर्म तथा विचारवाद पहले से ही देश में मौजूद हैं अंतर्जाल पर हिन्दी में सक्रिय लेाग उससे अपने को अलग रख नहीं पाये हैं।
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इन चिंतकों में से सबसे प्रसिद्ध लुडविग फायरबाख थे, जिन्होंने हेगेल के विचारवाद को रूपांतरित करने की कोशिश की और इस प्रकार हेगेल के धर्म और राज्य के सिद्धांत की आलोचना प्रस्तुत की.
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कुछ लोग गलती से इसे प्रेमचंद का गांधीवादी चरण मानते हैं, क्योंकि १ ९ ११-१ ३ की उनकी कहानियों पर शायद ही अमूर्त गांधीवादी सुधारवाद एवं विचारवाद का प्रभाव हो।
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लेकिन उपर लिख्त तरीके से विश्लेषण हमें स्थिति के साधारणीकरण क़ी ओर और पूरी स्थिति को ही अध्यात्मिक विचारवाद क़ी गर्त में ले जा कर डूबा देना होगा! द्वंदात्मक भौतिकवाद सिखाता है कि वर्गीय समाज मे सर्वहारा के सता पर काबिज हो जाने के वाद भी वर्ग संघर्ष जारी रहता है!
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लेकिन उपर लिख्त तरीके से विश्लेषण हमें स्थिति के साधारणीकरण क़ी ओर और पूरी स्थिति को ही अध्यात्मिक विचारवाद क़ी गर्त में ले जा कर डूबा देना होगा! द्वंदात्मक भौतिकवाद सिखाता है कि वर्गीय समाज मे सर्वहारा के सता पर काबिज हो जाने के वाद भी वर्ग संघर्ष जारी रहता है!