एसी हालत मे विचार शील विद्वान स्वंय सोच सकते है कि जयचन्द को हिन्दू साम्राज्य का नासक कह कर कलंकित करना कहाँ तक न्यायोचित है ।
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ऐसे सुंदर, ऐसे शक् तिशाली, ऐसे मेधावी, ऐसे विचार शील-फिर कितनी देर होगी उन लोगों को कि वे परमात् मा को न जानें।
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ज्योतिष के प्रसिध्ध फलित ग्रंथों के अनुसार चन्द्र वृताकार, वात-कफ प्रकृति का,सुन्दर,मृदु वचन बोलने वाला,सुन्दर नेत्रों वाला,गौर वर्ण,श्वेत वस्त्र धारण करने वाला, विचार शील,तथा बुध्धि मान है |
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इन परिस्थितियों में सामाजिक-राष्ट्रीय जागरण का अपना प्रारूप प्रस्तुत करते हुए सिद्धेश्वर का यह कथन अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि ' ' विचारवान, समझदार भले मानुषों और विचार शील बुद्धिजीवियों को पहल्कारी कदम बढाकर आगे आना होगा.
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क्रिक्केट / हाकी टीम देश के लिए खेलती है हम सचिन/ सोरव से सन्यास की बात कह सकते है-पर अभिनय एक निज़ी मामला है / जावेद साब; महेश भट्ट जी जेसे विचार शील लोगो की राय महत्व पूर्ण होगी-प्रवाल श्रीवास्तव
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मैं जोश 18 से अनुरोध करता हूँ की कौन क्या लिख रहा है इसकी जाँच करके ही छापे1 एक मूर्ख ने आसाराम बापू, देली, बनकर कुछ भी छाप दिया और आपने उसे ज्यों का त्यो छाप किया1 यह ग़लत है इसकी जाँच हो और कड़ी करवाही हो1 केवल विचार शील लोगों के ही लेख छापे अन्य के नही1 धन्यवाद1
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परन्तु वासुदेव जी एक तथ्य पर अवश्य विचार करना होगा (जो शायद आप जैसा विचार शील युवक) कर चुके होंगें की आवश्यकता है इन विजयों पर खुशियाँ मनाने से अधिक नीति निर्माण की जो वृहत स्तर पर सफलता प्रदान करे और साथ ही जिन राज्यों में आंकडा शून्य रहता है वहां भी पहुँचने की बधाई आपको सम्मान के लि ए.
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आदरणीय सद्गुरु जी, आपने मुझे इतना सम्मान दिया, आपकी बहुत आभारी हूँ, मुझे अभी ब्लाग पर आये कम समय हुआ है, बेस्ट ब्लागर बनने की आप को हार्दिक बधाई! मैनेपहले भी आपको बधाई पोस्ट की पर पोस्ट होने की जगह पता नहीं कहाँ गायब हो गई! आप जैसा विचार शील व्यक्तित्व ही ऐसा निरपेक्ष विश्लेषण कर सकता है!
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इसके बाद इस विषय पर कुछ अखबारों के विशिष्ट संस्करण पढ़े | किन्तु मूल कहानी आपके ब्लॉग से जानी | जो काम मीडिया कर रहा है वो आप भी कर रहे हैं | ब्लॉग के माध्यम से | इसमें हर विचार शील व्यक्ति की साझेदारी तो होगी ही | बहुत समय बाद इस ब्लॉग पर आई हूँ | बहुत कुक पढ़ना बाकी है | इला
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जिससे उसकी उद्दण्डता, उसकी कामासक्ति का वर्णन होने से उसकी राज्य कार्य में गफ़लत,उसके चामुण्ड राय जैसे स्वामी भक्त सेवक को बिना विचार के कैद में डालने की कथा से उसकी गलती,और उसके नाना के दिए राज्य में बसने वाली प्रजा के उत्पीड़न से कठोरता ही प्रकट होती है | इसी के साथ उसमे पृथ्वीराज के प्रमाद से उसके सामंतो का शहाबुद्धीन से मिल जाना भी लिखा है | एसी हालत मे विचार शील विद्वान स्वंय सोच सकते है कि जयचन्द को हिन्दू साम्राज्य का नासक कह कर कलंकित करना कहाँ तक न्यायोचित है ।