आदरणीय बासुदेव जी, सादर! “ ” वैसे भी इस देश में अफजल की फांसी पर मातम मनाने और सरबजीत की फांसी पर फूटे राष्ट्रवादी आक्रोश को आतंकवाद कहकर विदेशी हित साधने वाले तथाकथित बौद्धिकों की कमी नहीं है।
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भारत विभाजन के मसले पर भी हमारे नेताओं ने ब्रिटिश इच्छा के सामने क्या घुटने नहीं टेक दिए थे? आजादी के बाद आरंभिक वर्षों में जब देश नए भारत के निर्माण के सपने देख रहा था, हमारे नेता या तो अपना घर भर रहे थे या फिर विदेशी हित साध रहे थे।
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आपमे मुझमे एक फर्क है, आप जिस विचारधारा का समर्थन कर रहे हैं वह भारत मे विदेशी विचारों के बीज (जोकि अपनी जन्मभूमि के साथ साथ पूरे विश्व मे अप्रासंगिक हो चुकी है) यहाँ रोपना चाहते हैं, कुछ के उदारवाद और मानवता के चोले मे अपने स्वार्थ हैं और कुछ उस छाया से ढँक दिये गए हैं, और ये लोग भली भांति जानते हैं कि देश के पेट और माथे पर लात मारकर विदेशी हित साधने अथवा स्वार्थ सिद्धि मे राष्ट्रप्रेम सबसे बड़ा रोड़ा ही नहीं पहाड़ है।