विद्वान अधिवक्ता अपीलकर्तागण की ओर से आधार अपील का समर्थन करते हुए प्रश्नगत आदेश अंतर्गत अपील को तथ्य एवं विधि की दृष्टि में गलत कहा गया और अपील को स्वीकार करने पर बल दिया गया।
12.
जबकि विद्वान अवर न्यायालय द्वारा अपीलकर्ता अभियुक्त को आरोप अंतर्गत धारा 504 भा0 द0 सं0 दोषी ठहराये जाने के सम्बंध में दिया गया निष्कर्ष तथ्य एवं विधि की दृष्टि में सही नहीं पाया जाता है, जो पुष्टि होने योग्य नही है।
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उपरोक्त विवेचना के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि विद्वान अवर न्यायालय द्वा रा अपीलकर्ता अभियुक्त को आरोप अंतर्गत धारा 323, 325 भा0 द0 सं0 दोषी ठहराये जाने का निष्कर्ष तथ्य एवं विधि की दृष्टि में सही पाया जाता है, जो पुष्टि किये जाने योग्य है।
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इसलिए विद्वान अवर न्यायालय द्वारा आरोप अंतर्गत धारा 323 एवं 325 भा0 द0 सं0 के अंतर्गत अपीलकर्ता अभियुक्त रमेश चन्द्र उर्फ दफइया के दोषसिद्धि का जो निष्कर्ष दिया गया है, वह तथ्य एवं विधि की दृष्टि में पूरी तरह सही है और इसमें हस्तक्षेप का कोई विधि सम्मत आधार नहीं पाया जाता है।
15.
आपराधिक प्र्रकरण सं0 40 / 2005 राज्य विरूद्ध सम्पतराज जारी अभियोजन-स्वीकृति विधि की दृष्टि में दोषपूर्ण होने से इसके आधार पर अभियोजन-स्वीकृति को लेकर अभिलेख पर मुख्य रूप से अभियोजन-स्वीकृति प्राधिकारी गोविन्दसिंह (पी. डब्ल्यू. 1) की साक्ष्य है जिसने यह कहा कि भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा अभियुक्त सम्पतराज के विरूद्ध अभियोजन-स्वीकृति का आवेदन करने पर जिला परिषद्, पाली की जिला स्थापना समिति की दिनांक 6.8.2004 की बैठक में उसके विरूद्ध अभियोजन-स्वीकृति जारी करने का निर्णय लिया गया।
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इसके विपरीत बचाव-पक्ष के विद्धान अधिवक्ता ने अभियोजन-स्वीकृति को लेकर यह प्रारम्भिक आपत्ति प्रस्तुत की कि अभियोजन-स्वीकृति आपराधिक प्र्रकरण सं0 40 / 2005 राज्य विरूद्ध सम्पतराज प्राधिकारी गोविन्दसिंह अथवा जिला स्थापना समिति ने इस मामला से सम्बन्धित सम्पूर्ण अभिलेख का अवलोकन किये बिना ही अभियोजन-स्वीकृति प्रदर्श पी. 2 जारी कर दी है, इस कारण यहां यह नहीं माना जा सकता कि उन्होंने अभियोजन-स्वीकृति जारी करने से पूर्व स्वतन्त्र रूप से अपने विवेक का प्रयोग किया हो तथा इसी आधार पर अभियुक्त सम्पतराज के विरूद्ध जारी अभियोजन-स्वीकृति विधि की दृष्टि में दोषपूर्ण है।
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इन्होने ग्राम पंचायत, पोमावा के विभिन्न अभिलेख की अनदेखी कर अभियोजन-स्वीकृति में गलत तथ्यों का समावेश किया है जिससे तो यही लगता है कि इन्होंने अपने मस्तिष्क/विवेक का प्रयोग किये बिना यात्रिंक तौर पर अभियोजन-स्वीकृति जारी करने की औपचारिकता मात्र की है और इस सम्बन्ध में बचाव-पक्ष की ओर से प्रस्तुत विभिन्न न्यायदृष्टान्तों (पूर्वोक्त) में प्रतिपादित सिद्धान्त को देखते हुये यहां यही कहा जा सकता है कि अभियुक्त सम्पतराज के विरूद्ध जारी की गई अभियोजन-स्वीकृति (प्रदर्श पी. 2) विधि की दृष्टि में दोषपूर्ण है तथा ऐसी अभियोजन-स्वीकृति के आधार पर आरम्भ किया गया अभियोजन भी दुषित हुआ है।