भविष्य में राजपूतों को श्रमजीवी अभ्युत्थान में सहायक होने के लिए पहले उस वर्ग के साथ एकाकार होना होगा | उसके साथ एकाकार होने का अर्थ है समान स्वार्थ और हितों को एकाकार करना | यह एकाकार मुख्यत: राजनैतिक और आर्थिक हितों के एकाकार के रूप में होगा, पर ऐसा करते समय सामाजिक जीवन के घृणात्मक और विभेदात्मक पहलुओं का शुद्धिकरण आवश्यक है |
12.
यदि यथार्थ से हमारा आशय यह यथार्थ है, जिसका हम अनुभव करते हैं, यानी जो विभेदात्मक रूप से भाषा के माध्यम से स्थापित होता है तो यह दावा कि यथार्थवादी लेखन यथार्थ का प्रतिबिंब प्रस्तुत करता है, वस्तुतः यह हुआ कि यथार्थवादी लेखन उस विश्व का प्रतिबिंब प्रस्तुत करता है, जो भाषा के माध्यम से स्थापित होती है (कांस्ट्रक्टेड इन लैंगुएज) ।
13.
इसी दृष्टिकोण के अनुसार जातिवाद को मिटाना आवश्यक नहीं है, वरन जातिवाद के घृणात्मक और विभेदात्मक पहलुओं को समाप्त करना आवश्यक है | सभी जातियों की मौलिक विशेषताओं का लाभ उठाते हुए और उनकी जातिय विशेषताओं और परम्पराओं को सुरक्षित रखते हुए यह कार्यक्रम प्रचलित किया जा सकता है | जिस पुरुषार्थी-वर्ग को साथ लेकर नये कार्यक्रम को अपनाया जाय, उसमें निम्नलिखित जातियां मुख्य रूप से सम्मिलित की जा सकती है-
14.
हमारी इसी गलती का अंजाम हम, हमारा समाज, मासूम लड़कियां, आज और ना जाने कितने समय से भुगतते आ रहे हैं और ना जाने कब तक भुगतते रहेंगे लेकिन चाहे कुछ भी हो जाए कोई कितना भी लिखकर, रो कर या फिर अपना जीवन त्याग कर अपना दर्द बयां कर ले पर भारतीय समाज में बेटों की चाहत और बेटियों के प्रति विभेदात्मक व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आने वाला, वो कहते भी हैं हम नहीं सुधरेंगे.