वियोजक तत्वों के नियंत्रण हेतु संस्थाकरण द्वारा कर्ताओं के संबंधों तथा क्रियाओं का समायोजन होता है जिससे पारस्परिक सहयोग की वृद्धि होती है और अंतर्विरोधों का शमन होता है।
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इसका वियोजक रूप इस प्रकार हैःमोटा देवदत्त या तो दिन में खाता है या रात में खाता है, मोटा देवदत्त दिन में नहीं खाता, अतः मोटा देवदत्त रात में खाता है.