तथा जामेस कुक यूनिवर्सिटी के साइंसदानों की एक सांझी टीम का कहना है: समुद्री जल का बढ़ता तापमान प्रवाल के कुदरती रंगों को ले उड़ता है उनके रंगहीन होकर विरंजित होने की वजह बन जाता है.बढ़ते तापमान ही कोरल ब्लीचिंग की वजह बनते हैं.
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इस प्रकार प्राप्त सेलूलोज़ की झिल्ली को अन्य कई ऊष्मकों से गुजारा जाता है, जिनमें से एक में गंधक (सल्फर) हटाया जाता है, दूसरे में झिल्ली (फिल्म) को विरंजित किया जाता है और एक अन्य ऊष्मक में झिल्ली को भंगुर हो कर टूटने से बचाने के लिए इसमें ग्लिसरीन मिलाई जाती है।
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ये धागे खुदरंग, विरंजित या रंगीन कैसे भी हो सकते हैं. मानक मेंसामान्य अपेक्षाएंॅ और विशेष अपेक्षाएंॅ जैसे रगों का पक्कापन, शीलकृत नमूना, पैकिंग और सूचना अंकन के सम्बन्ध में जानकारी देने के साथ ही सभी किस्मों केधागों के सम्बन्ध में यूनिवर्सल सूती संख्या या धागा संख्या और उसके टूटन भार सेसम्बन्धित धागा सारणी १ में तथा रंगों के पक्केपन रेटिंग सारणी २ में दी गई हैं.
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मेरे विरंजित हृदय में, ढूंढे प्राणों की होली ।।……………….समय अब न एक चला चल ।मोड़ पर रुक-रुक कर,आशा दीप जल-जल कर,मग पर पग-पग बने पदचिन्ह-थक गए हैं ।बुझ गए हैं ।मिट गए हैं ।………………………प्रपंच विषम,गूढ़ प्रण मानव का एक ।क्षण-क्षण प्रयास,बदलने विधि का लेख ।।………………..देख अवनी का नभ से वारित अभिसार,जाने क्यों हो जता हृदय का,छिन्न तार-तार ।है मध्य शून्य ही दोनों के, फिर भीकुल दो और समुद्र अपार ।..................प्रात: प्रथम रश्मि आतीबन मंजुल