ऐसे लोगों के कितने ही विवाह-संबंध टूटते हुए नजर आते हैं, जिसके लिए माँ को मुजरिम करार देना एक निहायत गैर जिम्मेदाराना व्यवहार है।
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विवाह के बाद भी अमृता साहिर को भुला नहीं सकी, परिणामतः इनका विवाह-संबंध कभी भी स्थायी न हो सका, न कभी ताजगी और विश्वास ही कायम कर पाया।
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इस ब्रह्म अखबार में एक खबर थी कि किसी प्रसिध्द ब्रह्म-परिवार और हिंदू-समाज के बीच विवाह-संबंध होने की जो आशंका हो रही थी, हिंदू युवक की असम्मति के कारण वह टल गई है इस बात को लेकर उस हिंदू युवक की निष्ठा की तुलना में उस ब्रह्म-परिवार की शोचनीय दुर्बलता पर टीका-टिप्पणी की गई थी।
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बहुत पहले भी भारतीय समाज मे जातिपांति नही थी, दशरथ, भरत, जनक, भीम अर्जुन आदि न जाने कितने लोग अपने नाम के साथ जाति-सूचक “ चिन्हों ” का प्रयोग नही करते थे | विवाह-संबंध भी गुण-कर्म-स्वभाव को देख कर ' “ आचार्य ” लोग करवाते थे | संघ भी तो वही बात कह रहा है | वर्तमान समाज मे कुछ लोगों को आश्चर्य लग सकता है?
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क्या तुझे याद नहीं रहा कि तू एक मामूली दरजी का बेटा है और तेरा पिता बादशाह की प्रजा में एक निर्धन व्यक्ति था? तुझे क्या यह बात भी नहीं मालूम कि बादशाह लोग विवाह-संबंध या तो बादशाह में करते हैं या फिर मंत्री आदि के कुलीन घरानों में? अगर वे ऐसा न करें तो उनकी प्रजा में कुछ प्रतिष्ठा न रहे और राज्य का प्रबंध भी चौपट हो जाए।