प्रकृति के महादान में जैसे असीम धूप, जल, हवा, मिट्टी आदि पौधे को जन्म से ही मिल जाते हैं, परन्तु वह लेता उतना ही है, जितने में जीवन के साथ-साथ उसके रूप-रंग-रस की विशेषता बनी रहे, वैसे ही मेरे मन से अंकुरित भाव से अपने युग का विविधरूपी परिवेश स्वीकार किया है-अपनी विशेषता और भारतीय दृष्टि देकर आधुनिक कहलाने की इच्छा मुझे कभी नहीं हुई।