सभ्यता की यात्रा की गति के साथ-साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए विश्ववाद एक अनिवार्य योग्यता है ।
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बिन इलाहाबादवाद, पटनावाद, जिलावाद, और मोहल् लावाद के भारतवाद और आप जैसे बुद्धिजीवियों क प्रिय विषय विश्ववाद भी डिस्कस नहीं किया जा सकेगा।
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, विश्ववाद को हमने कचरे की टोकरी में फेंक दिया है और राज्यों द्वारा सुरक्षा प्रदान करने के सिद्धांत का विलोपन कर दिया गया है ।
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जब कुलाचें भरने से जी थक जायेगा, तब Francois Gautier जैसे लेखक भी हिन्दी में आयेंगे. तब हिन्दी चिठेरी हिन्दीवाद-समाजवाद-रूमानियत से उबर कर विश्ववाद में प्रवेश कर जायेगी.
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सारी कमियां विश्ववाद और बाजार (यानी अमेरिका) पर मढ़ कर हम सामुहिक विलाप करें.इसमें लेटेस्ट है-पत्रकार बेचारों को अखबार की बजाय चिठेरी (ब्लॉगिंग) का माध्यम भी अपनाना पड़ रहा है.
विश्ववाद के झंदाबरदारों अलाहाबाद, बेगुसराय, पटना याकि रीवा, सतना जैसी जगहों में पड़ोसी आप को पहचानता तो है वरना मैंने तो यहाँ (भोपाल) पर दो साल से जाना ही नही की बाजू वाले कमरे में कौन रहता है
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अमेरिका, अयोध्या, आंदोलन, आरसी मजूमदार, इतिहास, कृष्ण, दार्शनिक, धर्म, भारतीय, राजनीतिज्ञ, राम, राम मनोहर लोहिया, विश्ववाद, शिव, संस्कृति, सभ्यताओं के संघर्ष, समाजवादी, सावित्री, साहित्य अकादेमी, सीता, सैमुअल हंटिग्टन, हिंदुत्व
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ये बताने की वजह यह है की नए शोषक और भ्रष्ट साम्राज्यवाद को बताना तथा उसके खतरों से भारत के गाओं में रहने वालों (जिसमे भारत के ७ ० % गरीबों के अधिकांश बसते हैं तथा परिवार रोज बीस रुपये से भी कम की आमदनी पर गुजारा करते हैं) को आगाह करना है जो एक नए क्षद्म्वाद ' विश्ववाद ' के मुखौटे से नयी ठगी और शोषण का अवतार बन कर आ रही है.
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कृपया अपने महत्वपूर्ण सुझाव देने का कष्ट करे! राष्ट्रवाद या विश्ववाद या फ़िर पृथ्वीवाद! अगर दुनिया एक मुल्क हो जाये तो! राष्ट्रवाद या विश्ववाद या फ़िर पृथ्वीवाद! अगर दुनिया एक मुल्क हो जाये तो क्या होगा राष्ट्रवादियों, भाषावादियों, जाति-धर्मवदियों और क्षेत्रवदियों का? ख़ुदा नहीं न सही आदमी का ख़्वाब सही| कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिए| विचारों का क्या जहां तक मन जाये वहां तक पींगें बढ़ाइये!आज़ मेरा मन भी पींगों पर पींगें [...] 1947