१ ५. वीर बाला रत्नावती जैसलमेर-नरेश महारावल रत्नसिंह अपने किले से बाहर राज्य के शत्रुओं का दमन करने गये थे।
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वीर बाला चम्पा:-महाराणा प्रताप परिस्थितियों के कारण वन-वन भटक रहे थे किन्तु उन्होंने मुगलों के सामने झुकना मंजूर नहीं किया।
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धर्मसभा में सर्वप्रथम साध्वी श्री सुरभि श्री जी म. सा. के प्रभू महावीर की राह पर बढने वाली दीक्षार्थी बहिन को वीर बाला निरुपित किया।
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पाकिस्तान की मुख्तारन माई और अफ़ग़ानिस्तान की मलाला से कम जज्बा नही था उस वीर बाला का...भगवान उस बहदुर लड़की को शान्ती दे...
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धर्मसभा में सर्वप्रथम साध्वी श्री सुरभि श्री जी म. स ा. के प्रभू महावीर की राह पर बढने वाली दीक्षार्थी बहिन को वीर बाला निरुपित किया।
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यह लड़ाई घर-घर से और देश के कोने-कोने से लड़ी गई थी और इसकी सफलता में वीर पुरुषों के साथ वीर बाला, बच्चे बूढ़े सभी का बराबर का हाथ था।
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पंचायत समिति बिछीवाडा ने ग्रामीण लोकजीवन का नजारा पेश किया तो खास आकर्षण का केन्द्र बनी सीमलवाडा पंचायत समिति की झकी में वीर बाला कालीबाई की शहादत की घटना का नजारा पेश किया।
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वे स्वतंत्रता के बाद भी भीलों के मध्य काम करते रहे, किन्तु नानाभाई को नहीं बचाया जा सका और वीर बाला कालीबाई भी नानाभाई का अनुशरण करते हुए चिर-निद्रा में लीन हो गई।
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कृष्णा की जब अर्थी निकली तो जयपुर-नरेश का हृदय विदीर्ण हो गया और रुंधे गले से वह भी बोल उठा, “ हे वीर बाला तू धन्य है मैं तुझे सत्-सत् प्रणाम करता हूँ।
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वे स्वतंत्रता के बाद भी भीलों के मध्य काम करते रहे, किन्तु नानाभाई को नहीं बचाया जा सका और वीर बाला कालीबाई भी नानाभाई का अनुशरण करते हुए चिर-निद्रा में लीन हो गई।