तीव्र वृक्कशोथपर्याय-तीब्र गुत्सकीय वृक्कशोथ (आचुटे घ्लो-~ मेरुलो नेप्ह्रिटिस्), तीव्ररक्तस्रावी वृक्कशोथ (आचुटे ःएमोर्र्हगिच् ःएप्ह्रिटिस्) तीव्र वृक्कशोथ-इस रोग में वृक्को के धमनी गुच्छ (ग्लोमेरुलाई) में शोथ होताहै.
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तारकेश्वर रस मूत्र संस्थान के विभिन्न रोगों में, वृक्कशोथ, नेफ्राइटिस, मूत्रनली में शोथ, मूत्रावरोध, पथरी में खून आना आदि में लाभदायक है।
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इन्होंने कहा कि फेनासेटिन का उपयोग करने वाले पुराने लोगों में कुछ विशिष्ट बिमारियां जैसे, वृक्कीय पैपिला कोशिकाक्षय और चिरकारी अंतरालीय वृक्कशोथ के संक्रमण की ज्यादा सम्भावना थी।
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[3] इन्होंने कहा कि फेनासेटिन का उपयोग करने वाले पुराने लोगों में कुछ विशिष्ट बिमारियां जैसे, वृक्कीय पैपिला कोशिकाक्षय और चिरकारी अंतरालीय वृक्कशोथ के संक्रमण की ज्यादा सम्भावना थी।
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यह पुराने नेफ्राइटिस (वृक्कशोथ), माइग्रेन (आधे सिर का दर्द), मलेरिया के कारण उत्पन्न होने वाले तंत्रिकाओं की दुर्बलता आदि में भी लाभकारी होता है।
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मूत्रनली, वृक्कीय श्रोणि और वृक्काणु आपूर्ति केशिका में मिलने वाली, काठिन्य कोशिका वृक्कीय पैपिला कोशिकाक्षय का कारण बन जाता है जो आगे चलकर चिरकारी अंतरालीय वृक्कशोथ में परिवर्तित हो जाता है।
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[9] मूत्रनली,वृक्कीय श्रोणि और वृक्काणु आपूर्ति केशिका में मिलने वाली, काठिन्य कोशिका वृक्कीय पैपिला कोशिकाक्षय का कारण बन जाता है जो आगे चलकर चिरकारी अंतरालीय वृक्कशोथ में परिवर्तित हो जाता है।
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इस प्रकार तीव्र वृक्कशोथ में १०% तक रोगी प्रायः असाध्य होकरमर जाते हैं और १०-२० प्रतिशत जीर्णावस्था में तथा २०-३० प्रतिशत गुप्तावस्थामें परिणत हो जाते हैं तथा ४०-५० प्रतिशत रोगी पूर्णतया स्वस्थ हो जाते हैं.